NCERT Class 12th Geography Chapter 5 Solution | कक्षा 12th भूगोल नोट्स

इस पोस्ट में जानेगे NCERT Class 12th Geography Chapter 5 Solution | कक्षा 12th भूगोल नोट्स के बारे में, पाठ -5 कक्षा -12th भूगोल प्रश्न उत्तर

12th Class All Chapter Solution Notes PDF

Bihar Board Class 12th Geography Chapter 5 Subjective Solution

पाठ -5 कक्षा -12th भूगोल


1.     भारत की जनसंख्या के व्यावसायिक संघटन का विवरण दे ?

उत्तर –  भारत की  जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक निम्नलिखित है:-

(i).  उच्चावच :- तीव्र ढाल और उबड –खाबड़ धरातल वाले जगहों पर कृषि और मानव जीवन कठिन होता है।  जिसके कारण से पर्वतीय एवं मैदानी भागो के मिलने वाले जगहों में जनसँख्या का घनत्व बहुतभुत ही कम देखने को मिलता है। लेकिन वही मैदानी भागो में परिवहन के सभी साधनों के उन्नत व्यवस्था होने के कारण जनसंख्या सघन मिलता है।

(ii).  जलवायु  :- उल्लेखनीय है की अत्याधिक शुष्क , उष्ण , आर्द्र और जल वायु निश्चित रूप से जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करती है। भारत में लदाख जैसे स्थल और थार (रेगिस्तान) मरुस्थल जैसे उष्ण और शुष्क स्थल प्रतिकूल जलवायु के कारण ही विरल बसे हुए है।

(iii). ऊँचाई :-  ऊँचाई जनसंख्या वितरण और घनत्व में कमी का बहुत बड़ा कारण है क्योंकि  बढती हुई उंचाई के साथ वायु दाब और ऑक्सिजन की मात्रा में होने वाली कमी के कारण लोगो को रहने में दिक्कत आती है। 5500 मीटर की उंचाई  से ऊपर हिमालय पर्वतीय क्षेत्रो में बहुत ही कम जनसंख्या स्थाई रूप से रहती है।

(iv).  नदिया :- नदियों के बाढ़ ग्रस्त किनारे मानव बसेरा को प्रतिबंधित है। जबकि नदियों के संगम स्थल और परिवहन योग्य नदियों के तटीय क्षेत्र घनी आबादी से युक्त होते है। 

(v).  औधोगिक विकास :- जनसंख्या घनत्व के यह बहुत बड़ा कारण है क्योंकि   जिन जगहों पर उधोग स्थापित होते  है। वहां जनसंख्या घनत्व भी  बढ़ जाता है। दिल्ली, महराष्ट्र, गुजरात  आदि इसके अच्छे उदाहरण है। यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों के उन्नत होने के कारण आस–पास के क्षेत्रो से भी लोग आकर रहने लगे है।

(vi). खनिज और ऊर्जा संसाधन :- जहाँ  खनिज और ऊर्जा संसाधनो की उपलब्धियों वाले स्थान होते है वहाँ  जनसंख्या का वितरण सघन देखने को मिलता है। उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा , आदि  राज्यों में जनसंख्या का सघन बसाव कोयला  क्षेत्रो एवं सम्बन्धित उधोगो की अवस्थित वाले क्षेत्रो में है। जनसंख्या का घना बसाव विभिन्न प्रकार के खनिज की उपलब्धियों के कारण नागपुर के पठार है।


2. कार्यो के आधार पर शहरो का वर्गीकरण करे ?

उत्तर –  कार्यो के अधार पर शहरों में कई तरह के कार्य जैसे मनोरंजन, यातायात , खनन, आवासीय निर्माण तथा प्रौधोगिकी आदि कुछ विशिष्ट नगरो में सम्पन्न होते है। कार्यो के आधार पर शहरो और नगरो का  वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है –

(i).  व्यवसायिक नगर और व्यापारिक:- कृषि बाजार कसबे जैसे विनिपेग एवं कंसास नगर बैंकिंग एवं वितीय कार्य करने वाले नगर जैसे फ्रैकफर्ट और अंतदेशीय केंद्र जैसे मेनचेस्टर एवं सेंट लुईस परिवहन के केंद्र है। कोलकत्ता , दिल्ली, आगरा और सूरत व्यापारिक केंद्र रहे है।

(ii).सांस्कृतिक नगर :- मक्का मदीना, जैरुसलम, जगन्नाथ पूरी, अमरनाथ और  बनारस आदि तीर्थ स्थान अर्थात सांस्कृतिक नगर है। धार्मिक दृष्टि से इनका बहुत बड़ा महत्व है। 

(iii). प्रशासनिक नगर :- जहाँ राष्ट्र की राजधानियां पर केन्द्रीय सरकार के प्रसासनिक कार्यालय होते है उन्हें प्रसासनिक नगर कहा जाता है। जैसे केनबेरा, नई दिल्ली, बीजिंग, इत्यादि।


3.     भारत में जल विधुत पर एक नोट्स लिखे ?

उत्तर – देश में विधुत के दो रूप अधिक प्रचलित है –

  •  ताप विधुत
  •  जल विधुत

भारत में पहला जल विधुत शक्ति गृह 1897 में दार्जिलिंग में स्थापित किया गया था। इसकी उत्पादन क्षमता 20 किलोवाट की थी। तदप्रांत 1903 में कर्नाटक में कावेरी नदी के जल प्रपात शिवा समुन्द्र पर 49,200 किलो वाट शक्ति का जल विधुत संयंत्र लगाया गया। इसके बाद भारत के विभिन्न जगहों पर जल विधुत केंद्र स्थापित होते रहे है। 1951 – 1956 वे प्रथम पंचवर्षीय योजना काल में देश 1061 मेगावाट जल विधुत उत्पादित करता था इस दौरान भाखड़ा नागल कोयना , हीराकुंड, रिहन्द , दामोदर घाटी चम्बल और तुंगभद्रा परियोजना की स्थापना से जल विधुत उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। 

विधुत का उत्पादन 3420 मेगावाट द्वितीय पंचवर्षीय योजना में हो गया। इसके बाद तृतीय, चौथी, पांचवी, छठी , सातवी, आठवी, नौवी और दसवी परियोजनाओं में जल विधुत के उत्पादन में लगातार प्रगति हुई। देश में 28,860  मेगावाट जल विधुत दशवी परियोजना काल में उत्पादित की गई थी। देश में दक्षिणी भारत 42% पूर्वी भारत 7% उत्तर पूर्व भारत 1% पशिचमी भारत 15% और उत्तरी भारत 35% जल विधुत का योगदान करते है।

आज भारत में 1512 स्थलों पर लघु, मिनी तथा माइक्रो योजनाए हैं जिनकी क्षमता 6782 मेगावाट होने का अनुमान है । इस प्रकार पुरे भारत में लगभग 250,000 मेगावाट की जल विधुत संभाव्यता विद्यमान है।


4.     भारत के लौह एवं इस्पात उधोग के विकास एवं वितरण का वर्णन करे?

उत्तर – उधोगो के तात्पर्य  उधोगो के केंद्रीकरण से है। अर्थात जब किसी विशेष सुविधाओं के उपलब्ध होने पर किसी विशेष जगहों पर उधोग-धंधे अधिक विकसित हो जाते है।

(i).  बाजार :- वस्तुएं सदैव बाजार के लिए ही निर्मित की जाती है। अतः बाजार तक सुगम पहुंच लौह – इस्पात उधोग की स्थिति और आकार का महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व है।

(ii). शक्ति के साधन :- सभी उधोग किसी न किसी शक्ति के साधन पर आधारित है। शक्ति के साधन जो लोहा तथा इस्पात के कारखाने भारी मात्रा में कोकिंग कोयले पर निर्भर है।

(iii). परिवहन के साधन :- सस्ते और सक्षम परिवहन की आवश्यकता प्रत्येक उधोग में कच्चे माल की आपूर्ति के लिए कारखाने तथा निर्मित वस्तुओ को कारखानों से बाजार या उपभोग केंद्र तल लाने ले जाने के लिए होती है। अतः जहां यातायात की पर्याप्त सुविधाएँ विधमान होती है उसी स्थानों पर  उधोगो का विकास हुआ है।

(iv). स्वच्छ जल तथा सस्ती भूमि की उपलब्धता :- लोहा एवं इस्पात उधोगो  के कारखानों में विशाल और भरी मशीनों का प्रयोग किया जाता है, जिनके लिए अधिक भूमि एवं भरी मात्रा में स्वच्छ जल की आवश्यकता पड़ती है। भारत में अधिकांश लौह इस्पात केंद्र नदियों के किनारे ही  स्थित है। , अधिक जल की आवश्यकता  गैस की धुलाई करने , लोहा को ठंडा करने, वाष्प बनाने आदि कार्यो में पडती है।

(v).  पूंजी की उपलब्धता :- लौह – इस्पात उधोग के लिए भारी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होती है। क्योंकि किसी भी उधोग को शुरू करने के लिए भूमि और कच्चे माल की आवश्यकता होती है जिसके लिए पूँजी की आवश्यकता होती है।

(vi).  कच्चा माल की उपलब्धता :- किसी भी उधोग में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। वही लौह इस्पात उधोग में कोयला मैगनीज तथा अयस्क का उपयोग बहुत भारी मात्रा में होता है। हमारे देश में लौह – इस्पात उधोग के  कच्चे माल के क्षेत्र उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल आदि में स्थित है।


5.     भारत में धान के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन करे ?

उत्तर – भारत चीन के बाद विश्व का दुसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक देश है। भारत की कुल कृषि-भूमि के एक चौथाई भाग में धान की खेती की जाती है। यह देश के तीन-चौथाई लोगो का प्रमुख खाधान्न है। धान उष्ण एवं आर्द्र जलवायु की फसल है। इसे बोते समय 20 डिग्री तथा पकते समय 27 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती  है। धान के खेत में कई महीनो तक पानी भरा रहना आवश्यक है। इसकी खेती के लिए 75 से 200 सेमी. वर्षा की आवश्यकता होती है। जहाँ कम वर्षा वाले क्षेत्रो है वहाँ  सिंचाई की आवश्यकता रहती है। धान की खेती के लिए केवल चिकनी मिटटी उपयुक्त होती है।

पहाड़ी इलाको में  ढालो पर सीढ़ीनुमा खेत बनाकर घान की खेती होती है। घान की रोपनी कटाई और चावल की तैयारी में अधिक मानव श्रम की आवश्यकता  होती है। धान की खेती भारत में लगभग सभी भागो में की जाती है परन्तु इसका प्रधान उत्पादक क्षेत्र देश का पूर्वी भाग है। गंगा का मध्यवर्ती या निचला मैदान असम घाटी तथा पूर्वी तटीय प्रदेश और डेल्टा में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। क्योंकि इन जगहों पर सिचाई के अच्छे साधन होते है।

भारत  देश का 90 % चावल पश्चिम बंगाल, बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश, केरल , उत्तर प्रेदश , तमिलनाडू , उड़ीसा , छतीसगढ़,  कर्नाटक , मध्य प्रदेश , और असम से प्राप्त होता है। इन सभी क्षेत्रो में चावल उत्पादन की उपयुक्त भौगोलिक  दशाए पाई जाती है।


6.     नगर बहुप्रकार्यात्मकता होते है क्यों ?

उत्तर – अपनी केन्द्रीय भूमिका के अतिरिक्त अनेक शहर और नगर विशेशिकृत सेवाओं का निष्पादन करते है। कुछ शहरों और नगरो को कुछ निश्चित विशिष्टता, क्रियाओं, उत्पादनों आथवा सेवाओं के लिए माना जाता है। फिर भी प्रत्येक शहर अनेक कार्य करता है। प्रमुख अथवा विशेसिकृत प्रकारों के आधार पर भारतीय नगरो के निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है जो इस प्रकार है:-

(i).  शिक्षा नगर :- मुख्य नगरो में से कुछ नगर शिक्षा केन्द्रों के रूप में विकसित हुए | जैसे – दिल्ली, पटना, कोटा, वाराणसी आदि।

(ii). खनन नगर :- कुछ नगर खनिज क्षेत्रो के रूप में विकसित हुए है | जैसे – तेलंगना, झरिया , डिगबोई , आदि।

(iii). परिवहन नगर :- आयात और निर्यात ये वहन नगर जो मुख्यतः कार्यो में संलगन है। जैसे – कांडला , कोच्ची , कोझीकोड, सूरत, मुंबई, कोलकता आदि।

(iv).  वाणिज्यिक नगर :- व्यापार और वाणिज्यिक में विशिष्ट प्राप्त  नगरो को इस वर्ग में रखा जाता है। जैसे- कलकाता, दिल्ली, महाराष्ट्र आदि

(v). गैरिसन छावनी नगर :- इन नगरो का उदय गैरिसन नगरो के रूप में हुआ जैसे – जालंधर, अंबाला , महू , उधमपुर आदि ।


7.     उधोगो के स्थानीयकरण के कारको का वर्णन करे ?

उत्तर – उधोगो की स्थानीयकरण के कारको का  कारक निम्न है –

(i).  जल :- लोहा इस्पात उधोग में प्रक्रमण भाप निर्माण और लोहे को ठंडा करने के लिए जल आवश्यक तथा सूती वस्त्र उधोग में कपड़ो की धुलाई , रंगाई आदि के लिए जल की आवश्यकता  है। अतः इसका निर्माण  जल स्रोत के समीप ही होती है।

(ii). श्रम :- कसी भी उधोग के लोए श्रमिक की आवश्यकता होती है। उधोगो की अवस्थिति के लिए कुशल एवं अकुशल श्रमिक की आवश्यकता है , मुंबई और सूरत के सूती वस्त्र उधोग मुख्यतः बिहार और उत्तर प्रदेश से आये श्रमिको पर आधारित है।

(iii). कच्चा माल :- सभी उधोगो में कच्चे माल का प्रयोग  होता है। जिसे सस्ते दामो पर उपलब्ध होना चाहिए। भरी वजन सस्ते मूल्य एवं भार ह्रास मूलक कच्चा माल पर आधारित उधोग कच्चा – माल के स्रोत के समीप ही स्थित होते है। जैसे – लोहा , इस्पात , सीमेंट और चीनी उधोग।

(iv). बाजार :- उधोगो से उत्पादित माल की मांग और वहां के निवासियों की क्रियाशक्ति को बाजार कहा जाता है। यूरोप , चीन, उत्तरी अमेरिका , जापान और आस्ट्रिलेया वैश्विक बाजार है।

(v). ऊर्जा के स्रोत :- अधिक ऊर्जा की आवश्यकता जिन उधोगो में की जाती  है। वे ऊर्जा के स्रोतों के नजदीक  ही लगाये जाते है। जैसे पीट्सबर्ग और जमशेदपुर में लोहा इस्पात उधोग।


8.     हरित क्रान्ति की व्याख्या करे ?

उत्तर – भारत में बढती  जनसंख्या तथा उसकी सघन और समय-समय पर खाधानो के कमी को देखते हुए  सन 1967 के बाद अन्न – उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि करने का उद्देश्य बनाया गया, परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के प्रयास किए गए जिसके चमत्कारिक प्रभाव दिखाई देने लगे। सिंचाई के लिए आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था, कृत्रिम खाद एवं विकसित कीट नाशक तथा बीज से लेकर अंतिम उत्पाद तक विभिन्न नवीनतम उपकरण व मशीनों की व्यवस्था, हरित क्रान्ति का ही परिणाम माना जाता है।

हरित क्रांति की सबसे अधिक उल्लेखनीय उपलब्धि खाधानो के उत्पादन और उत्पादकता में काफी वृद्धि है। खाधानो का उत्पादन 1965 – 66 में 7.2 करोड़ टन था जो 2001 में बढ़कर 19.8 करोड़ टन हो गया। गेंहू के उत्पादन में सार्वधिक वृद्धि 6 गुना से भी आधिक दर्ज की गई। 1965 – 66 में गेंहू का उत्पादन 1.04 करोड़ टन था जो 2001 में 6.88 करोड़ टन हो गया | आनाज और ज्वार – बाजरा के उत्पादन में सबसे अधिक वृद्धि 197% की थी। चावल के उत्पादन में कई गुणा वृद्धि हुई।


9.     भारत में सिंचाई की आवश्यकता क्यों है ?

उत्तर – भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की जलवायु मानसूनी होने के कारण  यहाँ कृषि की सफलता बहुत हद तक सिंचाई पर निर्भर है। कहा गया है, की भारत में पानी सोना है, भारत में सिंचाई का महत्व और आवश्यकता निम्न कारणों से है:-

(i).  वर्षा का मूसलाधार होना :- मूसलाधार वर्षा कृषि के लिए हानिकारक है। इससे वर्षा जल भूमि में प्रवेश नहीं करता और ऊपर ही ऊपर बह जाता है।

(ii).  वर्षा का असमान वितरण :- मेघालय जैसे जगहों में कही  1000 CM वार्षिक वर्षा होती है, तो दूसरी ओर राजस्थान के कुछ हिस्सों में 10 cm ही वार्षिक वर्षा हो पाती है।

(iii).  अनिश्चित व अनियमित वर्षा :- मानसून द्वारा वर्षा का समय पर न होना अनिश्चित वर्षा है , जिससे उचित रूप में कृषि – कार्य सम्पन्न नहीं हो पाता है जिससे खेती करने में परेशानी होती है। कभी-कभी तो इससे फसलो पर काफी हानी पहुँचती है।

(iv). वर्षा का जल्द समाप्त हो जाना :- वर्षा का खास  ऋतू  है, जो अल्पकालीन है। जब फसले तैयारी पर आई हुई रहती है तब वर्षा एकाएक समाप्त हो जाती है जिससे फसलो अच्छे से नहीं पक पाती है। 


10.     भारत के आर्थिक विकास में सडको को महत्व बतावे ?

उत्तर – भारत के आर्थिक विकास में सडको का महत्वपूर्ण भूमिका है जैसा की  भारत एक विशाल एवं कृषि प्रधान देश है। सडको का निर्माण पहाड़ी क्षेत्रो और ढलानों पर भी असानी से किया जा सकता है। जिससे लोगो को कम समान या  छोटी दूरी तय करने के लिये सड़क मार्ग से जाने में कम खर्चा पड़ता है। सड़कों के कारण ही घर-घर तक सामान और सेवाएँ पहुँचाना संभव हो पाता है। स‌ड़क परिवहन से परिवहण के अन्य साधनों तक कड़ी का काम किया जा सकता है। इसके कुछ निम्न कारण है।

(i). उधोग धंधे :- उधोग धंधे के लिए सड़क का महत्वपूर्ण योगदान है क्योकि उधोगो के लिए कच्चे माल को समय पर लाना, निर्माण वस्तुओं को समय पर  बाजार तक ले जाना आदि सभी जगहों में अच्छे सड़क का बहुत योगदान है।

(ii).  आर्थिक महत्व :- सडक मार्गो से कृषि की सर्वधिक लाभ होता है। क्योंकि  सडको द्वारा खेतो तक सभी आवश्यक वस्तुओ  को पहुँचाना आसान होता है और खेतो से पैदा की होने वाली वस्तुएँ घर तक यानि  खपत क्षेत्रो तक पहुचाई जा सकती है। सडको के द्वारा शीघ्र खराब होने वाली बीजो को दुरी तक भेजा जा सकता है। अतः इसका व्यापारिक महत्व बढ़ जाता है।

अतः देश की औधोगिक उन्नति व्यापार और कृषि आदि सभी के विकास में सडको का महत्वपूर्ण योगदान है।


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आज हमने जाना NCERT Class 12th Geography Chapter 5 Solution | कक्षा 12th भूगोल नोट्स के बारे में, आशा करता हूँ की आपका सभी doubt clear हो गया होगा.

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