कक्षा-10th Hindi पाठ- 4 नाखून क्यों बढ़ते है Subjective Question Nakhun kyo badhte hai Question Answer Pdf

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‘नाखून क्यों बढ़ते है’ का लेखक कौन है ?

उत्तर:- नाखून क्यों बढ़ते है का लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी है. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन 1907 ई. में आरत दुबे का छपरा , बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ.

1:- नाखून क्यों बढ़ते है ? यह प्रश्न लेखक के आगे कैसे उपस्थित हुआ ?

उत्तर:- लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी की बेटी जिज्ञासु प्रवृति की थी. वह बातो-बातो में ही अपने पिता से नाखून बढ़ने का कारण पूछ बैठी. तब लेखक के आगे यह प्रश्न उपस्थित हुआ की नाखून क्यों बढ़ते है ?

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2:- बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है ?

उतर:- बढ़ता नाखून पाशविक प्रवृति का बोध करता है . प्रकृति इसके द्वारा मनुष्य को स्मरण करती रहती है की मानव आज भी लाख वर्ष पहले के नखदंताव्लाम्बी जीव से परे नहीं है तथा पशुओ के साथ एक ही सतह पर विचरण करता है.

3:- लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहा तक संगत है ?

उत्तर:- आदिमानव का मुख्य अस्त्र नाखून एवं दांत ही थे. जिनमे नाखून का स्थान सबसे उपर था . आज भी अगर मानव बाहरी अस्त्रों से हिन् रहे तो युद्ध की स्थिति में वह अस्त्र के रूप में नाखून का ही प्रयोग करेगा . अतः लेखक यदि नाखून को अस्त्र के रूप में देखता है तो इसे असंगत नहीं कहा जा सकता है.

4:- मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों कटता है ?

उत्तर:- आज मनुष्य को अस्त्र के रूप में नाखून की आवश्यकता नहीं है इसके अतिरिक्त मनुष्य नाखून बढ़ाकर पाशविक प्रवृति को दर्शाना भी नहीं चाहता है . इसी कारण मनुष्य बार-बार नाखूनों को कटता है.

5:- सुकुमार विनोदों के लिए नाखून को उपयोग में लाना मनुष्य ने कैसे शुरू किया ? लेखक ने इस संबंध में क्या बताया है ?

उत्तर:- आदि काल में मनुष्य नाखूनों का प्रयोग अस्त्र के रूप में करता था जब इससे विकसित अस्त्र मानव के पास हो गये तब उसने नाखूनों का उपयोग सजाने सवारने में करने लगा. नाखूनों को विभिन्न आकार जैसे:- त्रिकोण, चंद्राकर, दंतुल, आदि में दिया जाने लगा . कोई इसे रगड़कर लाल और चिकना बनाने लगा. ये धीरे-धीरे सहज प्रवृति के रूप में विकसित होते गये और मनुष्य इससे सुकुमार विनोद अर्थात मनोरंजन करता चलता आया.

6:- नख बढ़ाना और उन्हें काटना कैसे मनुष्य की सहजात वृतियाँ है ? इनका क्या अभिप्राय है ?

उत्तर:- नख बढ़कर मनुष्य को उसके भीतर के पशुता को याद दिलाता रहता है . परन्तु मनुष्य का मानना है कि वह पशुता अब छोड़ चूका है. इसलिए वह बढे नाखूनों को कटता रहता है . यह निरंतर चलते रहने से दोनों मनुष्य की सहजात वृतियाँ बन गयी .

7:- लेखक क्यों पूछता है की मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर ? स्पष्ट करें .

उत्तर:- आदिकाल में मनुष्य नाखूनों का प्रयोग अस्त्र के रूप में किया तो कहा गया कि मनुष्य में पशुता है. परन्तु आज मनुष्य नाखून को पीछे छोड़ उससे लाख गुणा शक्तिशाली हथियार बना लिया है. यह स्थिति ही लेखक के सामने प्रश्न खड़ा कर दिया है कि मनुष्य पशुता या मनुष्यता की ओर बढ़ रहस है.

8:- देश की आजादी के लिए प्रयुक्त किन शब्दों को अर्थ मीमांसा लेखक करता है और लेखक के निष्कर्ष क्या है ?

उत्तर:- देश की आजादी के लिए प्रयुक्त ‘इंडिपेंडेंन्स’ से बने स्वाधीनता शब्द की अर्थ मीमांसा लेखक करता है . इस शब्द के अन्य पर्याय स्वराज्य आदि है जिसमे सबसे स्व शब्द लगा है . लेखक का मानना है की किसी और का न सही परन्तु सभी शब्दों में अपने अधीन की बात आवश्य है. लेखक कहता है की हम ‘अनधीनता’ का प्रयोग क्यों नहीं करते जिसका अर्थ है – किसी के अधीन नहीं रहना . सचमुच यह विचारणीय मीमांसा है.

9:- लेखक ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती ? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें .

उत्तर:- अपने आप पर लगाये गये बंधन को नहीं छोड़ता हमारी संस्कृति की विशेषता है . यह ठीक वैसे ही जैसे कोई बंदरिया मरे हुए बच्चे को गोद में लिए फिरती है . प्राणी जगत का सर्वश्रेष्ट प्राणी अर्थात मनुष्य के लिए ये बंदरिया आदर्श कैसे हो सकती है. लेखक के कहने का सांकेतिक तात्पर्य यह है कि हमारी संस्कृति की वे परम्परा जो आज प्रासंगिक नहीं है , उसे छोड़ देना चाहिए .

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10:- ‘स्वाधीनता’ शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है ?

उत्तर:- ‘स्वाधीनता’ का शाब्दिक अर्थ लेखक बताते है – अपने अधीन रहना अर्थात अपने आप पर स्वयं नियंत्रण रखना तथा किसी बाहय कारको से स्वयं को अप्रभावित रखना . यह हमारे दीर्घ संस्कारो का भी फल है.

11:- निबंध में लेखक ने किस बूढ़े का जिक्र किया है ? लेखक की दृष्टि में बूढ़े के कथनों की सार्थकता क्या है ?

उत्तर:- निबंध लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उस बूढ़े का जिक्र किया है जो मानवीय गुणों से ओत-प्रोत था . वह खा करता था – बाहर नहीं भीतर की ओर देखो . हिंसा को मन से दूर करो , मिथ्य को हटाओ , क्रोध और द्वेष को दूर करो, आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचों, काम करने की बात सोचों . प्रेम ही बड़ी चीज है क्योकि वह हमारे भीतर है . उछुंखलता पशु की प्रवृति है . यह कथन निश्चय ही प्रासंगिक है जिससे हम स्वयं को मनुष्यता की ओर ले जा सकते है . आज इन मानवीय गुणों के ह्रास को देखते हुए बूढ़े का कथन निश्चय ही सार्थक दिखाई देता है .

12:- मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड जाएँगे . – प्राणीशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में कैसी आशा जगती है ?

उत्तर:- वस्तुतः नाखून बढ़ना यह दर्शाता है कि हमे अभी पाशविकता है . परन्तु प्राणीशास्त्री जब कहते है कि मनुष्य की पूँछ की तरह ही उसके नाखून भी विलुप्त हो जाएँगे तो लेखक को यह आशा जगती है कि चलो मनुष्य की पशुता एक दिन समाप्त हो जाएगी . मानव परस्पर प्रेम बढ़ाएगा और पृथ्वी इंद्र का राज्य बन जाएगी .

13:- ‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है ?

उत्तर:- मनुष्य जब किसी भी तरीके से अपना काम पूरा कर लेता है तो वह सफलता की श्रेणी में आता है. इसमें अच्छे और बुरे दोनों हो सकते है जैसे कोई व्यक्ति ये सोचता है कि आज मुझे किसी को लूटना है और वह बंदूक के बल पर ऐसा कर भी ल्रता है तो यह उसकी सफलता तो है परन्तु चरितार्थता नहीं क्योकि चरितार्थता तो तब होगी जब वह मानवीय सद्गुणों से भरे हो अर्थात उसके कर्म में प्रेम त्याग आदि भाव हो .

14:- व्याख्या करे –

(क) काट दीजिये, वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे; पर निर्लज्ज अपराधी की भांति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर .

उत्तर:- प्रस्तुत गधांश हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते है’ से लिया गया है जिसमे लेखक ने नाखून को नर्लज्ज अपराधी की तरह पेश करते हुए खा है की बढे नाखून हमारे भीतर के पशुता के प्रतीत है जिन्हें हम काटकर हटाते रहते है परन्तु वे बढ़-बढ़कर हमारी पशुता की याद दिलाते रहते है.

(ख) मै मनुष्य के नाखून की ओर देखता हु तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ .

उत्तर:- प्रस्तुत गधांश हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते है’ से लिया गया है जिसमे लेखक ने बढ़ते नाखून पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि नाखून का बढ़ना हमारे भीतर की पशुता को दर्शाता है. यह बढ़-बढकर यह याद दिलाता है की मनुष्य से अभी पशुता गई नहीं है . यह सोचकर लेखक निराश हो जाता है.

(ग) कमबख्त नाखून बढ़ते है तो बढ़ें, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा .

उत्तर- प्रस्तुत गधांश हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते है’ से लिया गया है जिसमे लेखक आत्मविश्वास भरे लहजे में यह कहना चाहता है की नाखून बढ़ता है तो मनुष्य उसे बढ़ने नहीं देगा अर्थात मनुष्य अपने में मनुष्यता की वृदि कर अपने भीतर के पाशविक गुणों को नष्ट कर देगा.

15:- लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भरी विशेषता क्या है ? स्पष्ट कीजिये .

उत्तर:- लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है – अपने आप के अधीन रहना . हम अपने उपर अपने द्वारा बंधन लगते है और उसके अधीन रहते है . इससे हमे यह लाभ होता है की हम न करने योग्य कार्य को नहीं करते है.

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16:- ‘नाखून क्यों बढ़ते है’ का सरांश प्रस्तुत करे .

उत्तर:- हिन्दी साहित्य के प्रख्यात लेखक और निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ललित निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते है’ में मानववादी दृष्टिकोण प्रकट करते हुए नाखून के माध्यम से सौंदर्य बोध,इतिहास चेतना और सांस्कृतिक आत्म गौरव का भाव जगाया है . लेखक ने बार-बार काटे जाने पर भी बढ़ जाने वाले नाखूनों के बहाने अत्यंत सहज शैली में सभ्यता और संस्कृति की विकासगाथा उदघाटित कर दिखाई है

एक ओर नाखूनों का बढ़ता मनुष्य की आदिम पाशविक वृति और संघर्ष चेतना का प्रमाण है तो दूसरी ओर उन्हें बार-बार काटते रहना और अलंकृत करते रहना मनुष्य के सौन्दर्य बोध और सांस्कृतिक चेतना को भी निरुपित करता है . लेखक ने नाखूनों के बहाने मनोरंजन शैली में मानव सत्य का दिग्दर्शन कराने का सफल प्रयत्न किया है

लेखक आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए कहता है कि पशुता का प्रतिक नाखून का बढ़ना एक दिन अवश्य रुकेगा और हम मनुष्यता की ओर निरंतर बढ़ेंगे . अतः हम सभी का कर्तव्य है कि मानवीय सद्गुणों को अपने में विकसित करे . खोखले आदर्शो को त्यागे . सफलता पर n इतराकर कर्मो को चरितार्थ करें. हम अपनी संस्कृति को विशेषता ‘स्वाधीन’ को भी चरितार्थ करें तभी हम पृथ्वी को स्वर्ग के समान बनायेंगे .

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