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Bihar Board class 10 civics पाठ 4 लोकतंत्र की उपलब्धियाँ solution Notes
किताब के प्रश्न:- लोकतंत्र की उपलब्धियाँ, (loktantra ki uplabdhiyan)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long-Answer Question):-
प्रश्न 1. लोकतंत्र किस तरह उत्तरदाई एवं वैध सरकार का गठन करता है ?
उत्तर– दुनिया के ज्ञात शासन प्रणालियों में सर्वोत्तम शासन प्रणाली के रूप में लोकतंत्र को है प्रतिष्ठा मिली है. या प्रतिष्ठा उत्तरदाई एवं वैध शासन के रूप में है. या निम्न तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है.
सर्वप्रथम अब्राहम लिंकन का कथन “लोकतंत्र जनता के लिए, जनता का और जनता के द्वारा संचालित शासन प्रणाली है” पर विचार करने से इसकी वैधता और भी स्पष्ट हो जाती है. लोकतंत्र में लोगों को चुनावो में भाग लेने और अपने प्रतिनिधियों को चुनाव का अधिकार होता है. पूर्व की तुलना में आज जनता लोकतांत्रिक चुनाव को उत्सव के रूप में लेती है तथा बढ़-चढ़कर भाग लेती है. यदि उसके आकांक्षाओं की पूर्ति चुनी हुई सरकार में पूरा नहीं होता है तब जनता को अगले चुनाव में हराने में देरी भी नहीं लगती.
यह खौफ ही राजनीतिक दलों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दबाव बनाता है जिससे जन-कल्याण सर्वोपरि हित बन जाता है. इसके अतिरिक्त लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता एवं संतोष का भाव प्रलक्षित होता है. आम जनता भी खुलकर बहसों में भाग लेती है. कुल मिलाकर देखा जाए तो आम जनता की कसौटी पर लोकतंत्र ही खरा उतरता है. अतः इसे उत्तरदाई एवं वैध शासन कहना गलत न होगा.
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प्रश्न 2. लोकतंत्र किस प्रकार आर्थिक संवृद्धि एवं विकास में सहायक बनता है ?
उत्तर-लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था वैध एवं जनता के प्रति उत्तरदायी होती है । इस आधार पर यह सोचना अप्रासंगिक नहीं होगा कि इस व्यवस्था में सरकारें अच्छी होंगी। साथ ही, यहाँ आर्थिक खुशहाली होगी और विकास की दृष्टि से भी अग्रणी होगा.
लेकिन जब हम लोकतांत्रिक शासन और तानाशाही शासन-व्यवस्था में आर्थिक खशहाली और विकास की दरों पर गौर करते हैं तो काफी निराशा होती है . नीच आकत चाट क अवलोकन से एक प्रश्न और भी उठता है कि आर्थिक समद्धि और विकास की दष्टि से क्या लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था तानाशाही व्यवस्था से बेहतर है ? चार्ट को गौर से देखें .
विभिन्न प्रकार के शासन व्यवस्था में आर्थिक विकास की दरें (1950-2000):-
शासन व्यवस्था का प्रकार | विकास दर |
---|---|
सभी लोकतांत्रिक शासन | 3.95 |
सभी तानाशाहियाँ | 4.42 |
तानाशाही वाले गरीब देश | 4.34 |
लोकतंत्र वाले गरीब देश | 4.28 |
उपर्युक्त आँकड़ों के अवलोकन से लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था से निराशा तो होती है. परन्तु किसी देश का आर्थिक विकास उस देश की जनसंख्या, आर्थिक प्राथमिकताएँ, अन्य देशों से सहयोग के साथ-साथ वैश्विक स्थिति पर भी निर्भर करती है . लोकतांत्रिक शासन में विकास की दर में कमी के बावजूद, लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था का चयन सर्वोत्तम होगा, क्योंकि इसके अनेक सकारात्मक एवं विश्वसनीय फायदे हैं जिसका एहसास हमें धीरे-धीरे होता है, जो अंततः सुखद होता है.
प्रश्न 3. लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विषमताओं को पाटने में मददगार होता है और सामंजस्य के वातावरण का निर्माण करता है ?
उत्तर-लोकतंत्र निम्न स्थितियों में सामाजिक विषमताओं को पाटने में मददगार होता है और सामंजस्य के वातावरण का निर्माण करता है:-
- लोकतंत्र आपसी समझदारी एवं विश्वास को बढ़ाता है.
- यह नागरिकों को शांतिपूर्ण जीवन जीने में सहायक होता है.
- यह विभिन्न वर्गों के बीच के भ्रांतियों को दूर करता है.
- टकराहट को हिंसक बनाने से रोकता है.
- जातीय और सांप्रदायिक उन्मादों को व्यापक स्तर पर रुकता है.
- सामाजिक मतभेदों एवं मंत्रों के बीच बातचीत एवं आपसी समझदारी के माहौल का निर्माण करता है.
- यह परस्पर सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधताओं के प्रति सम्मान भाव को विकसित करता है.
- यह नागरिकों की गरिमा एवं आजादी का ख्याल रखता है.
- लोगों के बीच नियमित संवाद की गुंजाइश बनी रहती है.
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प्रश्न 4. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने निम्नलिखित किन मुद्दों पर सफलता पाई है ?
(क) राजनीतिक असमानता को समाप्त कर दिया है
(ख) लोगों के बीच टकराव को समाप्त कर दिया है
(ग) बहुमत समूह और अल्प समूह के साथ एक जैसा व्यवहार करता है
(घ) समाज की आखिरी पंक्ति में खड़े लोगों के बीच आर्थिक पैमाना कम कर दिया है
उत्तर-
प्रश्न 5. इनमें से कौन सी एक बात लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं है ?
(क) कानून के समक्ष समानता
(ख) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ग) उत्तरदाई शासन व्यवस्था
(घ) बहुसंख्यको का शासन
उत्तर-
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प्रश्न 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक एवं सामाजिक असमानताओ के संदर्भ में किया गया कौन सा सर्वेक्षण सही और कौन गलत प्रतीत होता (लिखे सत्य/असत्य)
(क)लोकतंत्र और विकास साथ साथ चलते हैं.
(ख)लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानता है बनी रहती है ?
(ग)तानाशाही में और समानता नहीं होती.
(घ)तानाशाही व्यवस्थाएं लोकतंत्र से बेहतर सिद्ध हुई है.
उत्तर-
प्रश्न 7. भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों के संबंध में कौन- सा कथन सही अथवा गलत है-
(क) आज लोग पहले से कहीं अधिक मताधिकार को उपदेयता को समझने लगे हैं.
(ख) शासन की दृष्टि से भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ब्रिटिश काल के शासन से बेहतर नहीं है .
(ग) अभी वंचित वर्ग के लोग चुनाव में उम्मीदवार नहीं हो सकते हैं .
(घ) राजनीतिक दृष्टि से महिलाएं पहले अधिक सत्ता में भागीदार बन रही है.
उत्तर-
प्रश्न 8. भारतवर्ष में लोकतंत्र के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं ?
उत्तर– यह बात सही है कि भारतीय लोकतंत्र के समक्ष अनेक समस्याएं हैं. फिर भी भारतीय उपमहाद्वीप में भारत में ही सशक्त और स्थायी लोकतंत्र है. शिक्षा का प्रसार अनेक प्रकार से किया जा रहा है. बेरोजगारी, कृषि पिछड़ेपन आदि समस्याओं को योजना बद्ध तरीके से सुलझाने का प्रयास जारी है. पंचायती राज की स्थापना आम जनता को लोकतंत्र का प्रशिक्षण दे रहा है.
सामाजिक विषमता और आर्थिक विषमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है. चुनाव आयोग एक प्रकार से निष्पक्ष चुनाव हेतु कटिबद्ध दिखाई दे रहा है . लोगों की बढ़ती राजनीतिक जागरूकता दिनानुदिन लोकतंत्र को मजबूत कर रही है . इन हालातों में कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि भारतवर्ष में लोकतंत्र का भविष्य उज्जवल तो होगा ही साथ ही साथ अन्य देशों के लिए उदाहरण भी होगा .
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प्रश्न 9. भारतवर्ष में लोकतंत्र कैसे सफल हो सकता है ?
उत्तर-भारतीय लोकतंत्र उतना परिपक्व नहीं हुआ है। कारण कि जनता का जुड़ाव उस स्तर तक नहीं पहुँचा है, जहाँ जनता सीधे तौर पर हस्तक्षेप कर सके . अतएव इसकी सफलता के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम जनता शिक्षित हो . शिक्षा ही उनके भीतर जागरूकता पैदा कर सकती है. यह सच्चाई है लोकतांत्रिक सरकारें बहुमत के आधार पर बनती हैं, परंतु लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से चलनेवाली व्यवस्था नहीं है बल्कि यहाँ अल्पमत की आकांक्षाओं पर ध्यान देना आवश्यक होता है.
भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि सरकारें प्रत्येक नागरिक को यह अवसर अवश्य प्रदान करें ताकि वे किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बन सके . लोकतंत्र की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति के साथ-साथ विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थाओं के अंदर आंतरिक लोकतंत्र हो .
अर्थात् सार्वजनिक मुद्दों पर बहस-मुबाहिसों में कमी नहीं हो . राजनीतिक दलों के लिए तो यह अतिआवश्यक है क्योंकि सत्ता की बागडोर संभालना उनका लक्ष्य होता है . विडम्बना है कि भारतवर्ष में नागरिकों के स्तर पर और खासतौर पर राजनीतिक दलों के अंदर आंतरिक विमर्श अथवा आंतरिक लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा का सर्वथा अभाव दिखता है. जाहिर है कि इसके दुष्परिणाम के तौर पर सत्ताधारी लोगों के चरित्र एवं व्यवहार गैरलोकतांत्रिक दिखेंगे और लोकतंत्र के प्रति हमारे विश्वास में कमी होगी. इसे हम अपनी सक्रिय भागीदारी एवं लोकतंत्र में अटूट विश्वास से दूर सकते हैं.
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