इस पोस्ट में हम जानेगे NCERT Class 12 History Chapter 6 Subjective & Objective Solution Notes के बारे में, आप कक्षा 12 की सभी विषयों के हल को निचे दिए गये लिंक पर क्लिक के के जान सकते है। Class 12 History Chapter 6
>12th-class-all-chapter-solution-notes
Bihar Board Class 12 History Chapter 6 Subjective Solution Notes
- ➤Class 12th Hindi All Solutions Notes
- ➤Class 12th Hindi All Objective Solutions Notes
- ➤Class 12th History All Subjective & Objective Notes
दीर्घ उत्तरीय कक्षा 12 इतिहास क्वेश्चन आंसर
प्रश्न 1. सूफी आंदोलन या सूफीवाद पर एक नोट लिखें?
उत्तर : मुस्लिम धर्म में सूफीवाद रहस्यवाद की उत्पत्ति 10 वीं शताब्दी के आसपास शुरू हुई। कुरान उनके उपदेशों का प्रमुख आधार था वैसे सूफी का अर्थ होता है उन्नी वस्त्र नहीं पहनने वाला आदमी, ईरान में सूफी मत को मानने वाला व्यक्ति ऊनी वस्त्र नहीं पहनते थे। उस समय मुस्लिम समाज में अराजकता फैला हुआ था इसी अराजकता को दूर करने का प्रयास सूफी मत वालों ने किया और कई तरह के संगठन भी बनाएं। सूफी मत में गुरु की परंपरा का काफी महत्व होता है अतः सुखी मौत के निम्नलिखित सिद्धांत होते थे।
1. वे लोग एक ईश्वर में विश्वास रखते थे।
2. वे लोग रहस्यवादी होते थे।
3.वे लोग भोग विलास से दूर रहते थे।
4.वे लोग कर्म के बल पर अल्लाह को प्राप्त करना चाहते थे।
प्रश्न 2. भक्ति आंदोलन के प्रभाव बताएं?
उत्तर: भारत के मध्यकाल के इतिहास में भक्ति आन्दोलन चलाया गया था। कबीर, रामानंद, गुरुनानक, मीराबाई आदि यह सब भक्ति आंदोलन के प्रणेता थे। इन्होंने जात पात का विरोध किया। मूर्ति पूजा का विरोध किया। लेकिन भगवान राम और कृष्ण को दिल से मानने की बात कही। भक्ति आंदोलन के मानने वाले लोग कर्म को प्रधान मानते थे।
भक्ति आन्दोलन के सन्त
रामानुजाचार्य (Ramanujacharya):-
(11वीं शताब्दी) इन्होंने राम को अपना आराध्य माना। इनका जन्म 1017 ई. में मद्रास के निकट पेरुम्बर नामक स्थान पर हुआ था। 1137 ई. में इनकी मृत्यु हो गयी। रामानुज ने वेदान्त में प्रशिक्षण अपने गुरु, कांचीपुरम के यादव प्रकाश से प्राप्त किया था।
रामानंद (Ramanand) :-
रामानंद का जन्म 1299 ई. में प्रयाग में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रयाग तथा वाराणसी में हुई। इन्होंने अपना सम्प्रदाय सभी जातियों के लिए खोल दिया। रामानुज की भाँति इन्होंने भी भक्ति को मोक्ष का एकमात्र साधन स्वीकार किया। इन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम एवं सीता की आराधना को समाज के समक्ष रखा। रामानंद के 12 शिष्यों में दो स्त्रियाँ पद्मावती एवं सुरसी थी। इनके प्रमुख शिष्य थे—रैदास (हरिजन), कबीर (जुलाहा), धन्ना (जाट), सेना (नाई), पीपा (राजपूत)।
कबीर (Kabir) :-
कबीर का जन्म 1440 ई. (विवादास्पद) में वाराणसी में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। लोक-लज्जा के भय से उसने नवजात शिशु को वाराणसी में लहरतारा के पास एक तालाब के समीप छोड़ दिया। जुलाहा नीरु तथा उसकी पत्नी नीमा इस नवजात शिशु को अपने घर ले आये। इस बालक का नाम कबीर रखा गया। इन्होंने राम, रहीम, हजरत, अल्लाह आदि को एक ही ईश्वर के अनेक रूप माने।
इन्होंने जाति-प्रथा, धार्मिक कर्मकांड, बाह्य आडम्बर, मूर्तिपूजा, जप-तप, अवतारवाद आदि का घोर विरोध करते हुए एकेश्वरवाद में आस्था व्यक्त की एवं निराकार ब्रह्म की उपासना को महत्व दिया। निर्गुण भक्ति धारा से जुड़े कबीर ऐसे प्रथम भक्त थे, जिन्होंने संत होने के बाद भी पूर्णतः गृहस्थ जीवन का निर्वाह किया। इनके अनुयायी ‘कबीरपंथी’ कहलाए।
कबीर के उपदेश सबद सिक्खों के आदिग्रंथ में संगृहीत हैं। कबीर की वाणी का संग्रह ‘बीजक’ (शिष्य धर्मदास द्वारा संकलित) नाम से प्रसिद्ध है। बीजक में तीन भाग हैं—रमैनी, सबद और साखी । उनकी भाषा को सधुक्कड़ी कहा गया है। इसमें ब्रजभाषा, अवधी एवं राजस्थानी भाषा के शब्द पाये जाते हैं। कबीरदास की मृत्यु 1510 ई. में मगहर में हुई।
नोट : कबीर सुल्तान सिकंदर लोदी के समकालीन थे।
गुरु नानक (Guru Nanak):-
गुरु नानक का जन्म 1469 ई. अविभाजित पंजाब के राबी नदी के तट पर स्थित तलवण्डी नामक ग्राम में हुआ था, जो अब ननकाना साहिब के नाम से विख्यात है। उनकी माता का नाम तप्ता देवी तथा पिता का नाम कालूराम था। बटाला के मूलराज खत्री की बेटी, सलक्षणी से उनका विवाह हुआ, जिससे उन्हें दो पुत्र हुए। उन्होंने देश का पाँच बार चक्कर लगाया, जिसे उदासीस कहा जाता है । उन्होंने कीर्तनों के माध्यम से उपदेश दिए।
अपने जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने रावी नदी के किनारे करतारपुर में अपना डेहरा (मठ) स्थापित किया । अपने जीवन काल में ही उन्होंने आध्यात्मिक आधार पर अपने पुत्रों की जगह, अपने शिष्य भाई लहना (अगंद) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इनकी मृत्यु 1539 ई. में करतारपुर में हुई। नानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की। नानक सूफी संत बाबा फरीद से प्रभावित थे।
चैतन्य स्वामी (Chaitanya Swami):-
चैतन्य का जन्म 1486 ई. में नवदीप (Navadvipa) (बंगाल) के मायापर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र एवं माता का नाम शची देवी था। पाठशाला में चैतन्य को निमाई पंडित या गौरांग कहा जाता था। चैतन्य का वास्तविक नाम विश्वम्भर था। इन्होंने गोसाई संघ की स्थापना की और साथ ही संकीर्तन प्रथा को जन्म दिया। इनके दार्शनिक सिद्धान्त को अचिंत्य भेदाभेदवाद के नाम से जाना जाता है। संन्यासी बनने के बाद बंगाल छोड़कर पुरी चले गये, जहाँ उन्होंने दो दशक तक भगवान जगन्नाथ की उपासना की। इसकी मृत्यु 1533 ई. में हो गयी।
श्री मवल्लभाचार्य (Shri Mavallabhacharya) :-
श्री मद्वल्लभाचार्य का जन्म 1479 ई. में चम्पारण्य (वाराणसी) में हुआ था। इनके पिता का नाम लक्ष्मण अरट तथा माता का नाम यल्लमगरु था। इनका विवाह महालक्ष्मी के साथ हुआ। इनके दो पुत्र थे-
गोपीनाथ (जन्म 1511 ई.)
विट्ठलनाथ (जन्म 1516 ई.)
इन्होंने गंगा-यमुना संगम के समीप अरैल नामक स्थान पर अपना निवास स्थान बनाया । बल्लभाचार्य ने भक्ति साधना पर विशेष जोर दिया। इन्होंने भक्ति को मोक्ष का साधन बताया । इनके भक्तिमार्ग को पुष्टिमार्ग कहते हैं। सूरदास (1483-1563 ई.) वल्लभाचार्य के शिष्य थे।
गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) :–
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में राजापुर गाँव में 1532 ई. में हुआ था। इन्होंने रामचरितमानस की रचना की। इनकी मृत्यु 1623 ई. में हुई थी। तुलसीदास मुगल शासक अकबर एवं मेवाड़ के शासक राणाप्रताप के समकालीन थे।
धन्ना (Dhanna):-
धन्ना का जन्म 1415 ई. में एक जाट परिवार में हुआ था। राजपुताना से बनारस आकर ये रामानन्द के शिष्य बन गए। कहा जाता है कि इन्होंने भगवान की मूर्ति को हठात् भोजन कराया था।
मीराबाई (Meera Bai) :-
मीराबाई का जन्म 1498 ई. में मेड़ता जिले के चौकारी (Chaukari) ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम रत्न सिंह राठौर था । इनका विवाह 1516 ई. में राणा सांगा के बड़े पुत्र और युवराज भोजराज से हुआ था । अपने पति के मृत्यु के उपरांत ये पूर्णतः धर्मपरायण जीवन व्यतीत करने लगीं। इन्होंने कृष्ण की उपासना प्रेमी एवं पति के रूप में की। इनके भक्ति गीत मुख्यतः ब्रजभाषा और आंशिक रूप से राजस्थानी में लिखे गये हैं तथा इनकी कुछ कविताएँ राजस्थानी में भी हैं। इनकी मृत्यु 1546 ई. में हो गयी।
रैदास (Raidas) :–
ये जाति से चमार थे और बनारस के रहने वाले थे। ये रामानंद के बारह शिष्यों में एक थे। इनके पिता का नाम रघु तथा माता का नाम घरबिनिया था। ये जूता बनाकर जीविकोपार्जन करते थे। इन्होंने रायदासी सम्प्रदाय की स्थापना की।
दादू-दयाल (dadu-dayal) :–
ये कबीर के अनुयायी थे। इनका जन्म 1544 ई. में अहमदाबाद में हुआ था। इनका संबंध धुनिया जाति से था। साँभर में आकर इन्होंने ब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना की। अकबर ने धार्मिक चर्चा लिए इन्हें एक बार फतेहपुर सीकरी बुलाया था। इन्होंने ‘निपख’ मक आन्दोलन की शुरुआत की। इनकी मृत्यु 1603 ई. में हो गयी। उपरदास (Sundaradasa) (1596-1689 ई.) दादू के शिष्य थे।
शकरदेव (Shakardev)1449-1569 ई.):–
इन्होंने भक्ति आन्दोलन का प्रचार-प्रसार असम में किया। ये चैतन्य के समकालीन थे ।
Class 12 History Chapter 6 Long question Answer
प्रश्न 3. चिश्ती संप्रदाय क्या है?
उत्तर – जितने भी सूफी मत के मानने वाले थे वे सरल जीवन पर विश्वास रखते थे। साथ ही उनका सिद्धांत भी सरल था। लोग इनके सिद्धांत को आसानी से मानने लगे। इनकी भाषा सरल होती थी इसलिए यह सब लोग भक्ति आंदोलन के गुणों को अपना लेते थे। इन गुणों के प्रचार प्रसार करने लगते थे। चिश्ती संप्रदाय के अंतर्गत कई सिलसिले होते थे। चिश्ती संप्रदाय के लोग कर्म के साथ-साथ भगवान पर भी विश्वास रखते थे।
आज हमने जाना NCERT Class 12 History Chapter 6 Subjective & Objective Solution Notes के बारे में,
जाने– कम्प्यूटर से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
जाने इंग्लिश में-[Q&A] How do I study consistently for hours?
Tag- 12 class history book, bihar board class 12 history book solution, class 12 history chapter 6 notes in hindi, class 12 history hindi notes, bihar board 12th class history notes, bihar board 12th class history syllabus, bihar board 12th class history textbook, bihar board exam tayari syllabus, 12th arts history ncert book, Class 12 History Chapter 6, Class 12 History Chapter 6