NCERT Class 10 कव्यखंड Hindi Chapter 1 राम बिनु बिरथे जगी जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै Notes

इसमें हम जानेगे गोधूली भाग-2 के कव्यखंड पाठ 1 के बारे में जो गुरु नानक द्वारा लिखित कविता  राम बिनु बिरथे जगी जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै है जिसमे हम सारे सवालों के हल देखेंगे, तो चलिए जानते है . hindi ncert solutions class 10

शीर्षक- राम बिनु बिरथे जगी जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै

पाठ – 1

लेखक- गुरु नानक 

जन्म – 1469 ई. में तलबंडी ग्राम, जिला लाहौर

Bihar Board Class 10 कव्यखंड Hindi Lesson 1 राम बिनु बिरथे जगी जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै Notes

कविता के साथ hindi ncert solutions class 10

प्रश्न. राम बिनु बिरथे जगी जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै के लेखक कौन है ?

उत्तर– राम बिनु बिरथे जगी जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै के लेखक गुरुनानक है.

प्रश्न. गुरुनानक का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

उत्तर-गुरु नानक का जन्म 1469 ई. में तलबंडी ग्राम, जिला लाहौर में हुआ था . इनका जन्म स्थान ‘नानकाना साहब‘ कहलाता है.

>पाठ -2 (पधभाग) प्रेम अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वरौ

>पाठ -3 (पधभाग) अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ 

प्रश्न 1. कवि किसके बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?

उत्तर– निर्गुण निराकार ईश्वर की उपासक गुरुनानक इस जगत में जन्म को तब सार्थक मनाता है जब राम का नाम लिए जाए . क्योकि परमत्व की प्राप्ति होती है. अतः कवि के अनुसार राम के बिना यह जीवन व्यर्थ है.

प्रश्न 2. वाणी कब विष के समान हो जाती है ?

उत्तर– सुसंस्कृत वाणी कभी भी नष्ट नहीं होने वाला आभूषण है . परंतु सदवाणी भी कष्ट पहुंचती है और स्वयं को निंदा का पत्र बना देती है अतः कवि गुरुनानक ठीक ही कहते है की जीवन में राम का नाम नहीं लेने से वाणी विष के समान हो जाती है .

प्रश्न 3. नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मो की व्यर्थता सिद्ध करता है ?

उत्तर– सच्चे ह्रदय से नाम कीर्तन किये जाए तब जीवन सुखमय और शांतिमय होता है . भांडवरण से परम तत्व की प्राप्ति नहीं होती है . अतः कवि गुरुनानक नाम-कीर्तन के आगे पुस्तक की पाठन क्रिया , संध्या-पूजन करना, वैराग्य को अपनाना , कमंडल रखना , चोटी रखना, जनेऊ पहनना, वेश बदलना, तीर्थ यात्रा करना आदि कर्मो का व्यर्थ मानते है .

प्रश्न 4. प्रथम पद के अधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे ?

उत्तर– निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक जीवन भर भक्ति के सागर का मंथन कर यह पाये की सच्चे ह्रदय से यह जीवन सार्थक हो जाता है . यह अमृत तुल्य भक्ति है . दूसरी ओर उन्होंने पाया की भांडेवर पूर्ण भक्ति विष के समान है जिससे जीवन व्यर्थ है . कवि ने अपने जीवन में धर्म साधना के अनेक रूप देखे थे . उन्होंने पाया था कि कोई चोटी बांधकर,संध्या पूजन कर, तीर्थ यात्रा कर, शरीर में भष्म लगाकर, नंगे होकर भक्ति करता है . भक्ति के अनेक रूपों में कवि ने सच्चे ह्रदय से भक्ति को प्रतिष्ठत किया है .

प्रश्न 5. हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है ?

उत्तर-अपने जीवन में भक्ति के अनेक रूपों को देखने वाले गुरुनानक ने परम तत्व की प्राप्ति तथा जीवन को सार्थक बनाने के लिए बाहय भांडेवर से पड़े सच्ची भक्ति की बात कही है . यह भक्ति भाव हरिरस है . जो फलदायक है.

प्रश्न 6. कवि के दृष्टि में ब्रहम का निवास कहाँ है ?

उत्तर- गुरुनानक कहते है कि ब्रहम का निवास तो मानव शरीर ही है जिसके ह्रदय से प्रभु का वस् होता है . परंतु ब्रहम का निवास उस मनुष्य में हो सकता है जो काम, क्रोध, लौकिक, सुख-कामना, लोभ, माया, मोह, भय, अभिमान से परे हो.

प्रश्न 7. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?

उत्तर– प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहता है वह मुक्ति के लिए राम नाम का कीर्तन करता है . यदि सच्चे ह्रदय से भक्ति की जाये तो गुरु की कृपा से मुक्ति की पहचान हो जाती है . वह शीघ्र ही जान जाता है कि काम, लौकिक, सुख-कामना, लोभ, माया, मोह, भय, अभिमान से मुक्त होकर परमत्व को प्राप्त किया जा सकता है .

प्रश्न 8. व्याख्या करें :-

(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै .

उत्तर– प्रस्तुत गधांश निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक द्वारा रचित कविता ” राम नाम बिनु बिरथे जगी जनमा” से ली गई है जिसमे कवि ने राम नाम के कीर्तन के बिना जीवन की दशा का उल्लेख करते हुए कहा है कि जो राम नाम का कीर्तन सच्चे ह्रदय से नहीं करते वे लौकिक सुखो के जाल में उलझ-उलझ कर मर जाते है .

(ख) कंचन माटी जनै .

उत्तर– प्रस्तुत गधांश निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक द्वारा रचित कविता ” राम नाम बिनु बिरथे जगी जनमा” से ली गई है जिसमे कवि मुक्ति के मार्ग के बारे में उल्लेख करते हुए कहते है की मुक्ति की युक्तियो में एक मुक्ति है जो सोना का मिट्टी समझना अर्थात लौकिक सुखो का तुच्छा समझना.

(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाही मान अपमाना .

उत्तर– प्रस्तुत गधांश निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक द्वारा रचित कविता ” राम नाम बिनु बिरथे जगी जनमा” से ली गई है जिसमे कवि कहता है की सच्चा मनुष्य वही है जो हर्ष और शोक को एक ही रूप में लेता है . तथा उसे मान अपमान का बोझ नहीं होता है ऐसे मनुष्य के शरीर में ब्रहम का निवास होता है.

(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी .

उत्तर– प्रस्तुत गधांश निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक द्वारा रचित कविता ” राम नाम बिनु बिरथे जगी जनमा” से ली गई है जिसमे कवि स्वयं अपनी राम के प्रति भक्ति के बारे में कहता है कि वे सांसारिक सुखो से अपने को अलग रख के गोविंद में इस प्रकार रम गये है जैसे पानी के साथ पानी मिल जाता है .

प्रश्न 9. आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है ? अपने शब्दों में विचार करें .

उत्तर– निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक द्वारा रचित दो पदों ” राम नाम बिनु बिरथे जगी जनमा” और “जो नर दुख में दुख नहिं मानै” को पढकर भक्ति मार्गो की जानकारी होती है . निष्कर्षतः सच्चे ह्रदय से भक्ति ही परमत्व और मोक्ष की प्राप्ति है . जहाँ तक आधुनिक युग में उपासना के प्रचलित रूपों में सवाल है बड़े-बड़े यज्ञ सत्संग आदि अवश्य ही हो रहे है परंतु इनमे भौतिक सुख ही दिखाई देते है कही-कही तो ये व्यपार से कम नजर नहीं आता है .

इतने यज्ञ करने के बाद लोगो में शांति नहीं है . मृग तृष्णा के पीछे सभी भाग रहे है . सुख-चैन इतिहास के शब्द बन गये है . इन सबके पीछे एक ही कारण है कि भांडवर पूर्ण भक्ति . ऐसे परिवेश में गुरुनानक के प्रस्तुत पद बिलकुल नजर आते है .


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