इस पोस्ट में हम BSEB History Class 10 Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण Subjective Solution Notes के बारे में जानेंगे और विस्तार से समझेंगे
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Bihar Board Class 10 History Chapter 7 व्यापार और भूमंडलीकरण Subjective Solution Notes Pdf
लघु उत्तरीय प्रश्न (60 शब्दों में उत्तर दें)
प्रश्न 1. 1929 के आर्थिक संकट के कारणों को संक्षेप में स्पष्ट करें.
उत्तर– 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी प्रथम विश्व युद्ध के बाद अधिकांश कारखानों के बंद हो जाने से हुई जो युद्ध-समाग्री का उत्पादन करते थे. बेरोजगारी की स्थिति भयानक हो गई. स्वचालित कृषि यंत्रो ने भी बेकारी बधाई. शेयरों के मूल्यों में गिरावट आ जाने से लोगो ने न्यूयार्क शेयर बाजार में पैसा लगाना बंद कर दिया . परिणाम स्वरूप उस पर आश्रित अनिक देश आर्थिक संकट के शिकार हो गए.
प्रश्न 2.औधोगिक क्रांति ने किस प्रकार विश्व बाजार के स्वरूप को विस्तृत किया?
उत्तर-औधोगिक क्रांति ने बाजार की आवश्यकता को तो जन्म दिया ही साथ ही साथ कच्चे माल तथा सस्ते श्रम की आवश्यकता को भी जन्म दिया. नतीजा यह हुआ की औधोगिक देश यूरोप से निकलकर एशिया तथा अफ्रीका में पहुँचे . इस प्रकार बाजार का स्वरूप विस्तृत होता चला गया.
प्रश्न 3. विश्व बाजार के स्वरूप को समझाएँ .
उत्तर– औधोगिक क्रांति ने बाजार, कच्चे माल की तलाश में पूरी दुनिया में भौगोलिक खोज क्र दिया. जिससे नये-नये क्षेत्रो की जानकारी हुई और बाजार तलाश का काम पूर्ण हुआ . धीरे-धीरे उत्पादित माल विश्व के कोने-कोने में पहुँच गए . इस प्रकार पूरा विश्व एक बाजार बन गया.
प्रश्न 4. भूमंडलीकरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के योगदान ( भूमिका) को स्पष्ट करें.
उत्तर– बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपनी वहाँ तक पहुँच बनाई जहाँ तक उनका माल नहीं पहुँच पाता था. इसके लिए अंतराष्ट्रीय कानून और संस्थाएँ भी बनी . जैसे अमेरिका माल को सुदूर इलाकों में अगर पहुँचाने में कठिनाई थी तो स्वयं अमेरिका कंपनी वहाँ पहुँचकर उत्पादन क्रिया शुरू कर दी. इस प्रकार पूरा विश्व बाजार एक-दूसरे से जुड़ गये . अतः भूमंडलीकरण में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का योगदान अहम हैं.
प्रश्न 5. 1950 के बाद विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए किए जाने वाले प्रयासों पर प्रकाश डालें .
उत्तर– दो विश्व-युद्ध के दंश झेलने के बाद विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण को आवश्यकता महसूस हुई . इसके लिए अनेक अंतराष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की गयी . वितीय सहयोग और स्थिरता के लिए अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक की स्थापना हुई . देशो को भी व्यापार संबंधी कानून आसान बनाने की अपील की गई. इसका परिणाम सकरात्मक रहा और दुनिया का भूमंडलीकरण हो गया.
प्रश्न 6. भूमंडलीकरण के भारत पर प्रभावो को स्पष्ट करें.
उत्तर– भूमंडलीकरण से भारत में पूँजी निवेश और व्यापार में काफी इजाफा हुआ है . आर्थिक विकास तो हुआ ही है साथ ही साथ इसने सेवा क्षेत्र को भी बढ़ा दिया है जिससे रोजगार के अवसर उपलब्ध हो रहे है . वैश्विक स्तर पर भी भारत के लिए दरबाजे खुल गए हैं . इसी सब का परिणाम है की भारत की आर्थिक प्रगति आज दुनिया के लिए प्रेरणा और हैरत का विषय बन गया है.
प्रश्न 7. विश्व बाजार के लाभ हानि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें.
उत्तर– विश्व बाजार ने रोजगार के अवसर सृजन किया है. व्यापार और उधोग विकसित होने से पूरी दुनिया का प्रत्येक वर्ग संतुष्ट होता जा रहा है. परन्तु विश्व बाजार हानि से अछुता नहीं है . इसीकारण उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद को जन्म दिया और आज ये दुसरे रूप आर्थिक साम्राज्यवाद के रूप में विकसित हो रहा है . जिससे आशंका उत्पन्न हो रही है.
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (150 शब्दों में उत्तर दें)
प्रश्न 1. 1929 के आर्थिक संकट के कारण और परिणाम को स्पष्ट करें.
उत्तर– 1929-30 की आर्थिक मंदी ने सम्पूर्ण विश्व को अपनी गिरफ्त में लिया . दुनिया का एक मात्र देश रूस ही इससे अछुता रहा . इस महामंदी के प्रमुख कारणों को निम्न शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है –
- कृषिक्षेत्र में अति उत्पादन – प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विश्वबाजार में खदानों की आपूर्ति आवश्यकता से अधिक होने के कारण आनाज के मूल्य में भरी गिरावट आई . खरीददार के अभाव में अनाज गोदामों में सड़ने लगे.
- उपभोक्ता की कमी – प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान औधोगिक उत्पादों में अधिक वृद्धि हुई . परन्तु गरीबी, बेरोजगारी आदि के कारण खरीददार नहीं मिलने से विश्व बाजार लडखडा गया.
- अमेरिकी पूँजी के प्रवाह में कमी – अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने से इस पर आश्रित देशो में भी आर्थिक मंदी छा गई.
महामंदी ने गरीब देशो के अतिरिक्त आमिर देशो को भी नहीं बख्शा . अमेरिका महामंदी के चपेट में आया तब इस पर आश्रित अन्य देश भी कोपभाजन के शिकार बने . बैंको ने कर्ज देना बंद कर दिया . हजारो बैंक या तो दिवालिया हों गये या इसके कगार पर पहुँच गये . बेरोगारी में बेतहाशा वृद्धि हुयी . जर्मनी का सबसे बुरा हाल हुआ. उसकी मुद्रा मार्क का भरी अवमूल्यन हुआ . ब्रिटेन के आर्थिक तंत्र बिगड़ गया . भारत में भी व्यापार में गिरावट, कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी , पटसन उत्पादन पर प्रभाव आदि हुए.
प्रश्न 2. 1945 से 1960 के बिच विश्वस्तर पर विकसित होने वाले आर्थिक संबंधो पर प्रकाश डालें.
उत्तर– 1945 से 1960 के बीच विश्व स्तर पर विकसित होने वाले आर्थिक संबंधो को निम्नलिखित तीन क्षेत्रो में बंटा जा सकता है –
- पहला क्षेत्र – इसमें साम्यवादी अर्थतंत्र वाले देश थे जिनका नेतृत्व सोवियत संघ के हाथों में था . साम्यवादी देशों की अर्थव्यवस्था राज्य नियंत्रित थी.
- दूसरा क्षेत्र – इसमें पूँजीवादी अर्थतंत्र वाले देश थे जिसके एक भाग का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका और दूसरा भाग का नेतृत्व पश्चिमी देश के हाथो मे था . अमेरिका तेल सम्पदा देशो पर जबरन अपनी नीतियों को थोपा . लगभग अधिकांश देशों पर अमेरिका वर्चस्व कायम रहा . अमेरिकी प्रभाव के आगे पश्चमी देशों का प्रभाव गौण कहना ही ठीक होगा. परन्तु साम्यवादी प्रसार को रोकने के लिए इनलोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई यूरोपीय आर्थिक संघ बनाकर विश्व बाजार पर प्रभाव जमाने की कोशिश की गई.
- तीसरा क्षेत्र – इसमें एसिया तथा अमेरिका के नवस्वतंत्र देश थे . इन देशों पर पूँजीवादी तथा साम्यवादी दोनों गुटों की नजर थी . परन्तु इन देशो ने सावधानी से दोनों गुटों का सहयोग लिया . जैसे भारत में लौह-इस्पात उधोग अमेरिका और रूस दोनों के सहयोग से हुआ .
प्रश्न 3. भूमंडलीकरण के कारण आमलोगों के जीवन में आने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करें .
उत्तर–
अभी जिस समय में हम रह रहे हैं उसमें आर्थिक भूमंडलीकरण का प्रभाव आम जीवन पर साफ दिख रहा है. भूमंडलीकरण के कारण जीवीकोपार्जन के क्षेत्र में जो बदलाव आया है उसकी झलक शहर कस्बा और गाँव सभी जगह साफ दिखाई पड़ रहा है.
वर्तमान दौर में 1991 के बाद सम्पूर्ण विश्व में सेवा क्षेत्र का विस्तार काफी तीव्र गति से हुआ है, जिससे जीवीकोपार्जन के कई नए क्षेत्र खुले हैं। सेवा क्षेत्र का मतलब वैसी आर्थिक गतिविधियों से है जिसमें लोगों से विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करने के बदले पैसा लिया जाता है, जैसे-
- यातायात की सुविधा (बस, हवाई जहाज, टैक्सी)
- बैंक और बीमा क्षेत्र में दी जाने वाली सुविधा
- दूरसंचार और सूचना तकनीक (मोबाइल, फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट)
- होटल और रेस्टोरेंट
- बड़े शहरों में शॉपिंग मॉल(वैसा स्थान जहाँ एक ही जगह जीवन की सारी अनिवार्य आवश्यकता की वस्तु मिलती है)
- कॉल सेंटर (वैसी जगह जहाँ किसी कंपनी से संबंधित सभी क्रियाकलापों के विषय में फोन या इंटरनेट पर जानकारी दी जाती है,) इत्यादि.
उपरोक्त वर्णित सभी क्षेत्र भूमंडलीकरण के दौरान काफी तेजी से फैला है जिससे लोगों को जीवीकोपार्जन के कई नवीन अवसर मिले हैं.
प्रश्न 4. 1919 से 1945 के बीच विकसित होने वाले राजनैतिक और आर्थिक संबंधो पर टिप्पणी लिखें .
उत्तर– 1919 से 1945 के बीच विकसित होने वाले राजनैतिक और आर्थिक संबंधो को निम्न दो भागो में बाँटकर अध्ययन किया जा सकता है –
- 1919 से 1929 तक – यह काल आर्थिक विकास का काल रहा . यूरोपीय प्रभावक्षीण तो रहा, परन्तु उपनिवेशों पर पकड़ बनी रही . USA, जापान और सोवियत संघ प्रमुख शक्ति बन कर उभरे. रूस अपनी नई आर्थिक व्यवस्था को विश्वस्तर पर फ़ैलाने की कोशिश की. जापान आर्थिक प्रगति के लिए साम्राज्यवादी प्रवृति को बनाया . अमेरिका की राजनितिक स्थिति उथल-पुथल की रही.
- 1929के बाद 1945 तक – इस काल में विश्व क्व तमाम देश प्राय: मंदी से उबरने की कोशिश करते रहे. अमेरिका में ‘न्यूडील’ नामक नई आर्थिक नीति लागू की गई. अमेरिका में मुख्यतः हर क्षेत्र में विकास कार्य किया गया . यूरोपीय देशों ने मंदी से निकलने के लिए कड़ा मुद्रा नियंत्रण स्थापित किया . समस्त यूरोपीय देशों ने परस्पर व्यापार और सहयोग की नीति अपनाने पर बल दिया. परन्तु प्रतिकूल राजनैतिक स्थिति के कारण सफलता नहीं मिल पायी.
प्रश्न 5. दो महायुद्धों के बीच और 1945 के बाद औपनिवेशिक देशों में होने वाले राष्ट्रिय आंदोलनों पर एक निबंध लिखें .
उत्तर– दो महायुद्धों के बीच लगभग राजनैतिक स्थिति विश्व स्तर पर अस्थिर रही . प्रमुख महाशक्तियो के आर्थिक हितो की टकराहट की आवाज औपनिवेशिक देशों में भी सुनाई पड़ा. लड़ वे रहे थे और शोषित औपनिवेशिक देश हो रहे थे. ये शोषण औपनिवेशिक देशों में बगावत की भावना भर दी धीरे-धीरे लोग संगठित होते चल गये और आन्दोलन पर उतारू हो गये . भारत में भी मजदूरो ने शोषण खिलाफ संगठन बना लिया जैसे की अहमदाबाद के कपड़ा मिल के मजदूरो ने आन्दोलन किया. बाद में गाँधी ने भी सविनय अवज्ञा आन्दोलन किया . इस प्रकार की स्थितियाँ कमोवेश हर औपनिवेशिक देशों में रही जहाँ शोषण के खिलाफ आन्दोलन होते रहे.
1945 के बाद औपनिवेशिक देशो के आर्थिक आन्दोलन स्वतंत्रता आन्दोलन में बदलकर इतने प्रभावी हो गये की सम्राज्यवादीयों की चूलें हिल गयी . धीरे-धीरे ये स्वतंत्र होते गये . इनमे भारत भी था और विश्व मानचित्र में औपनिवेशिक देश स्वतंत्र देश का रूप ले लिया.
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पाठ – 1 | यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय, यूरोप में राष्ट्रवाद |
पाठ – 2 | समाजवाद एवं साम्यवाद |
पाठ – 3 | हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आन्दोलन |
पाठ – 4 | भारत में राष्ट्रवाद |
पाठ – 5 | अर्थ-व्यवस्था और आजीविका |
पाठ – 6 | शहरीकरण एवं शहरी जीवन |
पाठ – 7 | व्यापार और भूमंडलीकरण |
पाठ – 8 | प्रेस संस्कृति एवं राष्ट्रवाद |
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