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Bihar Board Class 10 Socail Science History Solution समाजवाद एवं साम्यवाद(इतिहास)
लघुउत्तरीय प्रश्न (60 शब्दों में उत्तर दे)
प्रश्न 1. रुसी क्रांति के किन्ही दो कारणों का वर्णन करे .
Answer- रूस की क्रांति के अनेक कारणों में से दो महत्वपूर्ण कारण है :-
- जार की निरंकुशता– क्रांति से पहले जार निकोल द्वितीय स्वेच्छारी, अयोग्य, अदूरदर्शी और निरंकुश था ऐसी स्थिति में आम जनता की स्थिति बद से बदतर होती गई जिसका परिणाम हुआ -क्रांति
- मजदूरो की दयनीक स्थिति – मजदुर एक तो राजनितिक अधिकारों से वंचित थे और दूसरे उनसे अधिक काम लिया जाता था और कम मजदूरी दी जाती थी
ये दयनीक स्थिति ने मजदूरो को क्रांति के लिए प्रोत्साहित किया.
प्रश्न 2. रुसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहाँ तक उत्तरदायी थी ?
Answer- रुसी क्रांति से पहले जार ने रुसी करण नीति को रूस में लागु किया जिसके अनुसार देश के सभी लोगो पर रुसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लाद गया. परन्तु रूस में मुख्य जाती स्लाव जाती के अतिरिक्त फिन, पोल, जर्मन, यहुदी, आदि जाती के लोग भी रहते थे जिनकी भिन्न संस्कृति और भाषा थी. इनलोगों में खलबली मच गयी और ये जार के खिलाफ हो गये.
प्रश्न 3. साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी कैसे ?
Answer- राजतंत्र तथा पूँजीवादी दुनिया में किसानो और मजदूरों का ही शोषण होता है, शायद इसे नकारना बेमानी ही होगी. इसी इसी आलोक कार्ल मार्क्स और अन्य समाजवादी विचारो से प्रभावित होकर लेनिन के नेतृत्व में विश्व में पहलीबार शोषण मुक्त शासन की स्थापना रूस में हुयी जिसमे उत्पादन के साधनों पर पुरे समाज का अधिकार हुआ जिसमे नई सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था थी क्योकि इसमें समाज को वर्ग विहीन और शिशन मुक्त बनाया तो दूसरी ओर सबको काम का अधिकार भी मिला.
प्रश्न 4. नई आर्थिक नीति मार्क्सवादी सिद्धांतो के साथ समझौता था कैसे ?
Answer- राजतंत्र और पूंजीवाद के स्थान पर एकाएक समाजवाद का महल खड़ा करना तुफानो के बीच रेत का महल खड़ा करने के बराबर था. यह बात लेनिन बखूबी जानता था. इसी कारण रूस रूस की समाजिक और आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उसे मार्क्सवादी मूल्यों से कुछ हद तक समझौता कर नयी आर्थिक नीति शुरू करनी पड़ी. जैसे जमीन राज्य की मणि गयी परन्तु व्यवहारतः यह किसान की हुई . अत्यन्त छोटे उधोगो को निजी अधिकार मिला.
प्रश्न 5. प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया कैसे ?
Answer- जार निकोलस द्वितीय के खिलाफ आम जनता में असंतोष की भावना व्याप्त थी. जनता को इस असंतोष से विमुक्त करने के उदेश्य से जार ने मित्रराष्ट्रों की ओर से प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया. हार की स्थिति में जार ने स्वयं कमान संभाला. जार की अनुपस्थिति ने रानी जरीना और उसके तथाकथित गुरु रासपुतीन को षडयंत्र का भरपूर मौका दिया. अतः युद्ध में हार और जरीना के षडयंत्र ने जनता को और भड़का दिया जिससे क्रांति का मार्ग प्रशस्त हो गया.
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (150 शब्दों में उत्तर दें)
प्रश्न 1. रुसी क्रांति के कारण की विवेचना करें.
Answer- रूस की क्रांति सामूहिक जन-असंतोष का परिणाम था और निम्नलिखित कारण वर्षों से शोषित और जार के प्रति नमित लोगो के असंतोष का कारण था-
- जार की निरंकुशता– क्रांति से पहले जार निकोल द्वितीय स्वेच्छारी, अयोग्य, अदूरदर्शी और निरंकुश था ऐसी स्थिति में आम जनता की स्थिति बद से बदतर होती गई जिसका परिणाम हुआ -क्रांति
- मजदूरो की दयनीय स्थिति- मजदुर एक तो राजनितिक अधिकारों से वंचित थे और दूसरे उनसे अधिक काम लिया जाता था और कम मजदूरी दी जाती थी
- कृषको की दयनीय स्थिति– कृषि दासता समाप्ति के बाद भी कृषको की दशा जस की तस बनी रही. छोटे-छोटे खेत, पूँजी का अभाव और करों के बेहिसाब बोझ ने उन्हें कही का नहीं छोड़ा. अब उनके पास क्रांति के सिवाय कोई चारा नहीं रहा.
- औधोगीकरण की समस्या– औधोगिक विकास के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता ने शोषण को कम करने के बजायबढ़ावा ही दिया जिससे चारो तरफ असंतोष व्याप्त हुआ और क्रांति के लिए पृष्ठभूमि तैयार किया.
- रूशी क्रांति की नीति- जार ने रूस की जनता पर रुसी भाषा, संस्कृति और शिक्षा को लादने का प्रयास किया जिससे भिन्न जाती और देश के लोग आक्रोशित हो गये.
- विदेशी घटनाओ का प्रभाव- क्रीमिया युद्ध और जापान से युद्ध में रूस की हार ने जनता के सब्र के बांध तोड़ दिये और जनता क्रांति पर उतारू हो गई.
प्रश्न 2. नई आर्थिक नीति क्या है?
Answer-लेनिन एक स्वप्नदर्शी विचारक नहीं, बल्कि वह एक कुशल सामाजिक चिंतक तथा व्यावहारिक राजनीतिज्ञ था. उसने यह स्पष्ट देखा कि तत्काल पूरी तरह समाजवादी व्यवस्था लागू करना या एक साथ सारी पूँजीवादी दुनिया से टकराना संभव नहीं है, जैसा कि ट्रॉटस्की चाहता था. इसलिए 1921 ई० में उसने एक नई नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवादी मूल्यों से कुछ हद तक समझौता करना पड़ा. लेकिन वास्तव में पिछले अनुभवों से सीखकर व्यावहारिक कदम उठाना इस नीति का लक्ष्य था. नई आर्थिक नीति में निम्नांकित प्रमुख बातें थीं
- किसानों से अनाज ले लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया. बचा हुआ अनाज किसान का था और वह इसका मनचाहा इस्तेमाल कर सकता था.
- यद्यपि यह सिद्धांत कायम रखा गया कि जमीन राज्य की है फिर भी व्यवहार में जमीन किसान की हो गई.
- 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रूप से चलाने का अधिकार मिल गया.
- उद्योगों का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया। निर्णय और क्रियान्वयन के बारे में विभिन्न इकाइयों को काफी छूट दी गई.
- विदेशी पूँजी भी सीमित तौर पर आमंत्रित की गई.
- व्यक्तिगत संपत्ति और जीवन की बीमा भी राजकीय ऐजेंसी द्वारा शुरू किया गया.
- विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए.
- ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई.
प्रश्न 3. रुसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें.
Answer- रूस की क्रांति के प्रभाव निम्नलिखित है-
- इस क्रांति के पश्चात् श्रमिक अथवा सर्वहारा वर्ग की सत्ता रूस में स्थापित हो गई तथा इसने अन्य क्षेत्रों में भी आंदोलन को प्रोत्साहन दिया.
- रूसी क्रांति के बाद विश्व विचारधारा के स्तर पर दो खेमों में विभाजित हो गया. साम्यवादी विश्व एवं पूँजीवादी विश्व . इसके पश्चात् यूरोप भी दो भागों में विभाजित हो गया। पूर्वी यूरोप एवं पश्चिमी यूरोप. धर्मसुधार आंदोलन के पश्चात् और साम्यवादी क्रांति से पहले यूरोप में वैचारिक आधार पर इस तरह का विभाजन नहीं देखा गया था.
- द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् पूँजीवाद विश्व तथा सोवियत रूस के बीच शीतयुद्ध की शुरुआत हुई और आगामी चार दशकों तक दोनों खेमों के बीच शस्त्रों की होड़ चलती रही.
- रूसी क्रांति के पश्चात् आर्थिक आयोजन के रूप में एक नवीन आर्थिक मॉडल आया. आगे पूँजीवादी देशों ने भी परिवर्तित रूप में इस मॉडल को अपना लिया। इस प्रकार स्वयं पूँजीवाद के चरित्र में भी परिवर्तन आ गया.
- इस क्रांति की सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश मुक्ति को भी प्रोत्साहन दिया क्योंकि सोवियत रूस की साम्यवादी सरकार ने एशिया और अफ्रीका के देशों में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक समर्थन प्रदान किया.
प्रश्न 4. कार्ल मार्क्स की जीवन एवं सिद्धान्तो का वर्णन करें.
Answer- कार्ल मार्क्स ( 1818-1883):- कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 ई० को जर्मनी में राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। कार्ल मार्क्स के पिता हेनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे, जिन्होंने | बाद में चलकर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा ग्रहण की परन्तु 1836 में वे बर्लिन विश्वविद्यालय चले आये, जहाँ उनके जीवन को एक नया मोड़ मिला । मार्क्स हीगल के विचारों से प्रभावित था । 1843 में उसने बचपन की मित्र जेनी से विवाह किया.
उसने राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास पर मांण्टेस्क्यू तथा रूसो के विचारों का गहन अध्ययन किया। कार्ल मार्क्स की मुलाकात पेरिस में 1844 ई० में फ्रेडरिक एंगेल्स से हुई जिससे जीवन भैर उसकी गहरी मित्रता बनी रही.
एंगेल्स के विचारों एवं रचनाओं से प्रभावित होकर मार्क्स ने भी श्रमिक वर्ग के कष्टों एवं उसकी कार्य की दशाओं पर गहन विचार करना आरंभ कर दिया। मार्क्स ने एंगेल्स के साथ मिलकर 1848 ई० में एक ‘साम्यवादी घोषणा पत्र’ प्रकाशित किया जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है.
उपर्युक्त घोषणा पत्र में मार्क्स ने अपने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है। मार्क्स विश्व के उन गिने-चुने चिंतकों में एक है, जिसने इतिहास की धारा को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। मार्क्स ने 1867 ई० में ‘दास-कैपिटल‘ नामक पुस्तक की रचना की जिले “समाजवादियों की बाइबिल” कहा जाता है
मार्क्स का सिद्धांत:-
- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत
- वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत
- इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
- मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
- राज्यहीन व वर्गहीन समाज की स्थापना
ऐतिहासिक भौतिकवाद:-
कार्ल मार्क्स के द्वारा इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या प्रस्तुत की गई. उसने कहा कि तिहास उत्पादन के साधन पर नियंत्रण के लिए दो वर्गों के बीच चल रहे निरंतर संघर्ष की कहानी है। उसके अनुसार इतिहास की प्रत्येक घटना एवं परिवर्तन के मूल में आर्थिक शक्तियाँ हैं .
उत्पादन प्रणाली के प्रत्येक परिवर्तन के साथ सामाजिक संगठन में भी परिवर्तन हुआ. इतिहास के पाँच चरम के अनुसार दृष्टिगोचर है और छटा चरण आने वाला है। इस प्रकार कार्ल मार्क्स के अनुसार छ: ऐतिहासिक चरण हैं.
- आदिम साम्यवाद का युग (Age of Primitive Communism)
- दासता का युग (Slave age)
- सामन्ती युग (Feudal age)
- पूँजीवादी युग (Capitalist age)
- समाजवादी युग (Socialist age)
- साम्यवादी युग (Communist age)
प्रश्न 5. यूटोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें.
उत्तर- आदर्शवादी, अव्यवहारिक और वर्ग समन्वय के हिमायती समाजवादियो में सेंट साइमन चार्ल्स फौरियर, लुई ब्ला, राबर्ट ओवन आदि आग्रणी थे. इनके विचारो का संक्षिप्त अध्ययन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-
- सेंट साइमन- ये शोषण के खिलाफ थे. तथा समाज से आशा करते थे की वह निर्धन वर्ग के भौतिक एवं नैतिक उत्थान के लिए कार्य करे.
- चार्ल्स फौरियर- ये आधुनिक औधोगिकवाद के विरोधी थे तथा उनका मानना था की श्रमिको को छोटे नगर अथवा कस्बो में काम करना चाहिए.
- लुई बलां- ये आर्थिक सुधारो के पहले राजनितिक सुधारों के हिमायती थे.
- राबर्ट ओवन- इनका मानना था कि संतुष्ट श्रमिक ही वास्तविक श्रमिक है. और ऐसा उन्होंने अपनी फैक्ट्री में श्रमिको को अच्छा वेतन देकर साबित भी कर दिया.
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