Bihar Board Class 10 Hindi गध chapter 7 परंपरा का मूल्यांकन (निबंध) solution Notes pdf

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Bihar Board class 10 गधभाग lesson 7 परंपरा का मूल्यांकन (हिंदी) solution Notes

Q. परंपरा का मूल्यांकन का लेखक कौन है?

उत्तर- परंपरा का मूल्यांकन का लेखक रामविलास शर्मा है .

पाठ के साथ 

प्रश्न 1. परंपरा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों ?

उत्तर- वस्तुतः लेखक रामविलास शर्मा जी हिंदी आलोचना के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है . अतः उनलोगों के लिए परम्परा का ज्ञान मानते जो साहित्य में युग -परिवर्तन करना चाहते है और सदियों को तोडकर क्रांतिकारी साहित्य रचना चाहते है क्योकि प्रगतिशील आलोचना के ज्ञान से ही प्रगतिशील साहित्य का निर्माण किया जा सकता है.

प्रश्न 2. परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक क्यों महत्वपूर्ण मानता है ?

उत्तर– साहित्य के परम्परा में कभी-कभी देखने को मिलता है की कोई साहित्य शोषक वर्ग के विरुद्ध है तो कोई शासक के पक्ष में ये दोनों प्रकार के साहित्य लेखक का ही दिमाग है . जहाँ लेखक के विवेक का पता चलता है . चूँकि साहित्य समाजं का वर्णन होता है . अतः साहित्य रचते समय लेखक को अपने विवेक से ऐसी रचना करनी चाहिए जिससे परम्परा मूल्यांकन का वास्तविक प्रतिबिंब दिखाई दें.

प्रश्न 3. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है ? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें.

उत्तर– साहित्य एक विचारधारा ही नहीं है बल्कि यह भावनाओ का सागर है जिससे मनुष्य का इन्द्रिय बोध और उसकी भावनाएँ भी उजागर होती है जो उसे प्राणीमात्र से जोडती है . अतः लेखक की राय से साहित्य का भावनात्मक पक्ष अपेक्षाकृत अधिक स्थाई है .

प्रश्न 4. ‘साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होता, जैसे समाज में’ लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए .

उत्तर– समाज में सामंती व्यवस्था के अवशेष पर पूँजीवादी व्यवस्था का जन्म हुआ जो सामंती व्यवस्था से उत्तम है . परन्तु इस दोनों व्यवस्थाओ पर साहित्य की रचना की जाए तब सामंती व्यवस्था का साहित्य पूँजीवादी व्यवस्था के साहित्य से अच्छा हो सकता है . अतः कहा जा सकता है कि समाज की तरह साहित्य में विकास प्रक्रिया नहीं है.

प्रश्न 5. लेखक मानव  चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी सापेक्ष स्वाधीनता किन दृष्टांतो द्वारा प्रमाणित करता है ?

उत्तर– निश्चय ही आर्थिक परिस्थितियों राजा को रंक और रंक को राजा बना देती है . परन्तु सब कुछ परिस्थितियों द्वरा निर्धारित नहीं होते . जैसे गुलाम एथेंस ने लगभग पुरे विश्व को प्रभावित किया परंतु शोषक अमेरिकियों ने मानव संस्कृति को कुछ भी नहीं दिया.

प्रश्न 6. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा की भूमिका स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से आगाह करता है ?

उत्तर– साहित्य में निरंतर न्यापन साहित्य के लिए संजीवनी होती है . यदि प्रतिभाशाली लेखको की साहित्य अद्वितीय हो तो उसके बाद न्यापन के अवसर नहीं मिलने से साहित्य बेजान हो जायेगा . एसी ही खतरों से लेखक आग्रह करता है.

प्रश्न 7. राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते है ?

उत्तर-साहित्य के मूल्य शाश्वत होता है जबकि राजनीतिक मूल्य अल्पकालिक होता है . पंद्रहवी-सोलहवी सदी के ब्रिटिश सम्राज्य समाप्त हो गये परंतु शेक्स पियर , मिल्टन आदि कवियों की शैली आज भी अपनी आभा विखेर रही है . इस प्रकार हम कह सकते है की साहित्य का मूल्य अपेक्षा अधिक स्थाई है .

प्रश्न 8. जातीय अस्मिता का लेखक किस प्रसंग में उल्लेख करता है और उसका क्या महत्व बताता है ?

उत्तर-लेखक शर्मा जी ने साहित्य के विकास में प्रतिभाशाली मनुष्यों के महत्व के प्रसंग में जातीय अस्मिता का उल्लेख करते हुए कहाँ है की क्षेत्र भले ही भौगोलिक दृष्टिकोण से बट जाते है . परंतु साहित्य के परंपरा का ज्ञान रहने पर वे सांस्कृतिक रूप से अविभाजित रहते है . इसी प्रकार जन समुदाय जब एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में प्रवेश करती है तब उसकी अस्मिता भी बनी रहती है और वह गुणों को फैलाती है .

प्रश्न 9. जातीय और राष्ट्रिय अस्मिताओ के स्वरूप का अंतर करते हुए लेखक दोनों में क्या समानता बताता है ?

उत्तर– लेखक रामविलास शर्मा जी कहते है की जातीय विभिन्नता प्राय: हर जगह है हर जाती प्राय: अपनी अस्मिता को लेकर सजग होती है . राष्ट्र पर कोई संकट आता है तो राष्ट्र की विभिन्नताए एकत्व का भाव प्रकट कर राष्ट्र की अस्मिता बचाने का प्रयास करती है . इस प्रकार दोनों में एकात्मकता को बनाये रखने का गुण होता है

प्रश्न 10. बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता ?

उत्तर– भारत विभिन्नताओ का देश शुरु से ही रहा है फिर भी योगदान सदैव एकता कायम रही है . इसमें सामाजिक ताल-मेल राष्ट्रीयता की भावना का योगदान तो रहा ही है परंतु  विभिन्न साहित्यों जैसे रामायण , महाभारत आदि ग्रंथो का भी योगदान रहा है जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलते . इतना ही नहीं बल्कि अनेक कवियों जैसे व्यास , वाल्मीकि आदि को योगदान के नाकारा नहीं जा सकता. अतः लेखक ने ठीक ही कहाँ है की बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला नहीं कर सकता है.

प्रश्न 11. भारत की बहुजातीय मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है . कैसे ?

उत्तर– अनोखापन और विलक्षणता से ओत-पोत बहुजातीयताओं भारत में है, वह कही नहीं है . अनेक जातियाँ शुरू से ही रही और अनेक बाहर से आयी सभी के मिलन से समनी संस्कृति का जन्म हुआ जो आपसी रिश्तो को मजबूत बनाया . इनका इतिहास इतना प्रेरणास्पद रहा है की आने वाली पीढ़ियों ने भी इसे अपनाकर परंपरा को कायम किया जो आज भी है. इसमें विभिन्न साहित्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई सचमुच ही भारत की बहुजातीयता मुख्यतः संस्कृति और इतिहास की देन है.

प्रश्न 12. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रिय आवश्यकता है ? इस प्रसंग में लेखक के विचारो पर प्रकाश डालें .

उत्तर– संसाधनों का समुचित बँटवारा ही समाजवाद है. ऐसी स्थिति में मानव संसाधन द्वारा संसाधनों का उचित उपयोग होगा जिससे समग्र भरत का पूर्ण विकास होगा . अतः लेखक ने भारत के चहूँमुखी विकास के लिए ही समाजवाद को भारत की राष्ट्रिय आवश्यकता बताया है.

प्रश्न 13. निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है ? उसे साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है ? विचार करें .

उत्तर– वस्तुतः लेखक का विचारधारा समाज से प्रेरित है . वे सभी के उत्त्थान के साथ-साथ देश का भी विकास चाहते है . निबंध समापन में लेखक समाजवादी व्यवस्था कायम करने और निरक्षता जानता के साक्षर होने के स्वप्न देखता है ताकि जनता शिक्षित होकर साहित्य को पढ़े और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त कर देश को सार्थक बनावे. सचमुच लेखक के स्वप्न को साकार करने में परंपरा का मूल्यांकन जरुरी है .

प्रश्न 14. साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है . इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कौन-से तर्क और प्रमाण उपस्थित किए हैं ?

उत्तर– वस्तुतः लेखक शर्मा जी ने साहित्य के संबंध में बताया है की इस पर समय और समाज का प्रभाव पड़ता है . परन्तु यह आवश्यक नहीं की समान परिस्थितियाँ होने पर साहित्य भी समान हो जैसे की एथेंस और अमेरिका दोनों गुलाम थे परन्तु एथेंस के साहित्य ने पुरे दुनिया को रौशन किया अतः निश्चय ही साहित्य सापेक्ष रूप से स्वाधीन होता है.

प्रश्न 15. व्याख्या करें –

विभाजित बंगाल से विभाजित पंजाब की तुलना कीजिए, तो ज्ञात हो जायेगा कि साहित्य की परंपरा का ज्ञान कहाँ ज्यादा है, कहाँ कम है और इस न्यूनाधिक ज्ञान के सामाजिक परिणाम क्या होते हैं.

उत्तर– प्रस्तुत गधांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित परंपरा का मूल्यांकन शीर्षक निबंध से अवतरित है जिसमे लेखक ने परंपरा के ज्ञान को आवश्यक बताते हुए कहा है की भौगोलिक रूप से विभाजित क्षेत्रो के वासियों को जब परंपरा का ज्ञान रहेगा तब वे संस्कृति रूप से अविभाजित रहेंगे जैसे की बंगाल भले ही भौगोलिक रूप से बटा हो परंतु परंपरा का ज्ञान के कारण पंजाब की तुलना में अविभाजित ही है . सचमुच परंपरा का ज्ञान एकता और समंजस्य का कड़ी होता है.


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