भारत में राष्ट्रवाद (इतिहास) | पाठ 4 | Bihar Board 10th Class subjective Notes

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Bihar Board Lesson-4 भारत में राष्ट्रवाद (इतिहास) Subjective Notes

लघुउत्तरीय प्रश्न (60 शब्दों में उत्तर दें):-

प्रश्न 1. असहयोग आन्दोलन प्रथम जन आन्दोलन था कैसे ?

उत्तर- महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 1920 ई. में असहयोग आन्दोलन शुरू किया गया. 1920 के पहले भी व्रिटिश सरकार के खिलाफ अनेक आंदोलन हुए परन्तु जो जज्बा और आक्रोश असहयोग आन्दोलन में पुरे भारत में एक साथ दिखाई दिया वह अभूत पूर्व था. इसमें उच्च से उच्च और निम्न से निम्न वर्ग के लोगो ने भी भाग लिया. अहिंसात्मक रूप लिए इस आंदोलन हक्मरानों के नींद उड़ा दिए. इन्ही कारणों से इसे प्रथम जन आन्दोलन कहना गलत नहीं होगा.

प्रश्न 2. सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या परिणाम हुए ?

उत्तर- सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्न परिणाम हुए-

  1. इससे राष्ट्रिय आंदोलनों का सामाजिक विस्तार हुआ.
  2. समाज के विभिन्न वर्गों का राजनीतिकरण हुआ.
  3. महिलाओ में राष्ट्रिय भावनाओ का विकास हुआ.
  4. व्रिटिश आर्थिक हितों को चोट पहुँची.
  5. संगठन के लिए नए-नए तरीके सामने आए.
  6. व्रिटिश सरकार ने काँग्रेस से समानता के अधार पर बात-चित की.

प्रश्न 3. भारतीय राष्ट्रिय काँग्रेस की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई?

उत्तर- अंग्रेजी शासन के दौरान शासको द्वारा शोषण एवं जातीय भेद-भाव की नीति से क्षुशाध होकर विखरे राष्ट्रवादी शक्तियों को देखकर भारतीय जन मानस एक ऐसे अखिल भारतीय संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगा जिसके माध्यम से राजनितिक एवं आर्थिक आक्रोश प्रकट किया जा सके. इसी तत्वाधान में ए. ओ. ह्यूम के प्रयास से 1885 ई. में मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में भारतीय राष्ट्रिय काँग्रेस की स्थापना हुई. जिसके प्रथम अध्यक्ष व्योनेश चन्द्र बनर्जी बने.

प्रश्न 4. बिहार के किसान आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखें .

उत्तर- बिहार के नील उत्पादक किसानो की दयनीय स्थिति और तिन कठिया पद्धति नके कारण किसान आन्दोलन का जन्म हुआ जिसकी शुरुआत गाँधी के नेतृत्व में 1917 ई. में चंपारण सत्याग्रह आंदोलन द्वारा हुआ. धीरे-धीरे किसान जागरूक होते गये. मुंगेर, बिहटा आदि क्षेत्रो में भी क्रिव्यवस्था के खिलाफ किसान आन्दोलन हुए जो बाद में राष्ट्रिय आंदोलनों से जुडकर नयी दिशा प्रदान किए.

प्रश्न 5. स्वराज पार्टी की स्थापना एवं उदेश्य की विवेचना करें.

उत्तर- चौरी-चौरा कांड के बाद गाँधी द्वारा असहयोग आन्दोलन 1922 में स्थगित करने से कुछ काँग्रेसी नेता जैसे देशबंधु चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरु ने राष्ट्रिय आंदोलन को गतिशील बनाये रखने के लिए स्वराज्य पार्टी की स्थापना 1923 में की. इसका उदेश्य था-

  1. भारत को स्वराज्य दिलाना
  2. असहयोग आंदोलन को सफल बनाना
  3. सरकार की नीति का विरोध करना.

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दीर्घउत्तरीय प्रश्न ( 150 शब्दों में उत्तर दें):- भारत में राष्ट्रवाद

प्रश्न 1. प्रथम विश्व युद्ध का भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन के साथ अंतर्सबंधो की विवेचना करें.

उत्तर- 1914 ई. में प्रथम विश्व युद्ध छिड़ा जिसका प्रभाव भारत के राष्ट्रिय आंदोलनो पर पड़ना स्वभाविक था. वस्तुतः भारत ब्रिटिश सम्राज्य का चमकदार हिरा था जिसे वह खोना नहीं चाहता था. सरकार ने धोषणा की कि वह राष्ट्रीयता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए युद्ध में सम्मिलित हुआ है. वह धीरे-धीरे भारत में उत्तरदायित्व पूर्ण शासन स्थापित करेगा. भारतीय जनता अत्यधिक प्रभावित होकर युद्ध में सरकार का पूरा सहयोग दिया

युद्ध के समय दिया गया सरकारी आश्वासनों ने एक नयी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी. जिससे राष्ट्रवाद परिपकव हुआ . युद्ध में इंग्लैंड की जित हुयी. इसके साथ ही सरकार का रवैया बदला और भारतीयों का भरम टुटा. युद्ध के दौरान ही होमरूल आन्दोलन शुरू हो चूका था नरम-दल और गरम-दल एक हो चुके थे. काँग्रेस और मुस्लिम लीग एक रंगमंच पर आ चुके थे. अंग्रेजो के बेवफाई ने राष्ट्रिय आंदोलनों को और तेज कर दिया. अब अंग्रेजो पर विश्वास नहीं रहा. इसका नतीजा यह हुआ कि राष्ट्रिय भावनाएँ इतनी प्रबल हो गई कि पूरा भारत अब सुधार नहीं बल्कि स्वतंत्रता की मांग करने लगा.

प्रश्न 2. असहयोग आन्दोलन के कारण एवं परिणाम का वर्णन करें.

उत्तर- असहयोग आंदोलन महात्मागाँधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जनआंदोलन था. इस के मुख्यतः तीन कारण थे-

  1. खिलाफत का मुदा
  2. पंजाब में सरकार की बर्बर कार्रवाइयो के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना
  3. स्वराज्य की प्राप्ति करना

असहयोग आन्दोलन के मुख्य कार्यक्रम थे-

  1. सरकारी उपाधियों और वैतनिक पदों का त्याग
  2. सरकारी दरबारों और सरकारी उत्सवों का बहिष्कार
  3. सरकारी स्कुलो, कॉलेजों, न्यायालयों, विदेशी माल आदि का बहिष्कार
  4. पंचायत, राष्ट्रिय विधालयो की स्थापना
  5. तिलक स्वराज्य कोष में दान देना इत्यादि.

असहयोग आन्दोलन के निम्न परिणाम हुए-

  1. गाँधी की गिरफ़्तारी से खिलाफत मुधे का अंत हो गया.
  2. हिन्दू-मुस्लिम एकता भंग हो गई.
  3. साम्प्रदायिक बोल-बाला बढ़ गया
  4. हिंदी को एक-सूत्र में पिरोने वाली भाषा के रूप में मान्यता मिली.
  5. चरखा एवं करघा को बढ़ावा मिला
  6. काँग्रेस एवं गाँधी में जनता का विश्वास बढ़ा

प्रश्न 3. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों की विवेचना करें.

उत्तर- ब्रिटिश औम्निवेशिक सता के खिलफ गाँधी जी के नेतृत्व में शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन असहयोग आंदोलन के बाद दूसरा जन आन्दोलन था. इसके कारणों को निम्न शीर्षकों के अंतर्गत रखा जा सकता है.

  1. साइमन कमीशन– 1919 के एक्ट की सुधारो की समीक्षा के लिए साइमन के नेतृत्व में बनाये गये कमीशन में एक भी भारतीय के नहीं होने से राजनीतिक संघर्ष का जन्म हुआ.
  2. नेहरु रिपोर्ट– मोतीलाल नेहरु ने अंग्रेजो द्वारा संविधान बनाने की दी गयी चुनौती को स्वीकार कर संविधान लिखी जिसे नेहरु रिपोर्ट कहा जाता है. परन्तु ये अमान्य घोषित कर दी गयी . परन्तु साम्प्रदायिकता की भावना सतह पर आ गयी जिससे निपटने के लिए महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया.
  3. विश्वव्यापी आर्थिक मंदी– विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने आर्थिक रूप से भारत को झकझोर दिया जिससे गाँधी को आन्दोलन के लिए उपयुक्त अवसर दिखाई दिया.
  4. समाजवाद का बढ़ता प्रभाव– काँग्रेस के अन्दर बढ़ते वामपंथी दबाव को संतुलित करने के लिए आन्दोलन की आवश्यकता महसूस हुई.
  5. महात्मा गाँधी का समझौतावादी रुख– गाँधी-इरविन समझौता असफल होने की स्थिति में बाहय होकर गाँधी ने दांडी मार्च द्वारा आन्दोलन प्रारंभ हो ही गया.

प्रश्न 4. भारत में मजदूर आन्दोलन के विकास का वर्णन करें.

उत्तर- यूरोप में औधोगिकरण, मार्क्सवादी विचार, स्वदेशी आन्दोलन ने मजदूरों को जागृत कर दिया और वे अपने हक के लिए आन्दोलन शुरू कर दिए जिसे मजदूर आन्दोलन खा जाता है. मिल मालिको द्वारा वेतन वृद्धि को वापस लेने की घटना ने मजदूरो को उदेलित कर दिया जिससे गाँधी को मध्य स्थता करनी पड़ी थी. रुसी क्रांति और श्रम संगठन की स्तापना जैसी घटनाओ ने भी मजदूरो के आन्दोलन को प्रेरित किया इसी क्रम में काँग्रेस पार्टी ने ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस‘ की स्थापना कर मजदूरों के आन्दोलन को समर्थन कर उन्हें राष्ट्रिय आंदोलनों में जोड़ने का प्रयास किया.

अंग्रेजो द्वारा मजदूर आन्दोलन दबाने का हर संभव प्रयास किया गया. परन्तु ये दबे नहीं बल्कि शाखित होकर और सशक्त होते चले गये.

प्रश्न 5. भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन में गाँधीजी के योगदान की विवेचना करें.

उत्तर- लोकमान्य तिलक की मृत्यु के बाद गाँधी जी ने भारतीय राजनीती की बागडोर अपने हाथो में ले ली . उन्होंने राष्ट्रिय आन्दोलन को एक नया मोड़ दिया और 1947 ई. तक राष्ट्रिय आन्दोलन के सूत्रधार बने रहे.

महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा के शस्त्र का उपयोग किया और अनेक स्वतंत्रता आन्दोलन किये. इन सभी आंदोलनों में जनता उत्साहित होकर भाग ली. ये गाँधी ही थे कि ग्रामिण महिलाएँ भी आन्दोलन में भाग ली. उन्होंने 1920-22 में असहयोग आन्दोलन, 1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन और 1942 में भारत छोडो आन्दोलन कर समस्त भारतीयों को एकता के सूत्र में बांधा. अंत में 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ.

इस प्रकार हम देखते है की राष्ट्रिय आन्दोलन में गाँधी जी का योगदान अद्वितीय है. उन्होंने देश को सत्याग्रह का एक नया अस्त्र प्रदान किया. गाँधी जी सामाजिक उत्थान, हरिजन-सुधार तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता को उतना ही महत्व हए जितना की राष्ट्रिय आंदोलनों को.

प्रश्न 6. भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित करें.

उत्तर- वस्तुतः भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना देश के जन-आन्दोलन के क्रांतिकरियो के उदय का परिणाम था जिसका उदेश्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त करना, मजदूरो किसानो को संगठित करना तथा मजदूरो-किसानो का गणतंत्र स्थापित करना था.

साम्यवादियो ने शीघ्र ही मजदूरो को ट्रेड यूनियनों में संगठित करने की नीति अपने. 1927-29 में देश व्यापी श्रमिक आन्दोलन हुए जिसे सरकार ने दमनात्मक करवाई किए. 1933 के बाद कम्युनिष्ट विचार धारा का व्यापक प्रचार हुआ . अंग्रेजो lo यह भय हो गया की जल्द सता हस्तांतरण नहीं होने पर कही भारत में बाद में साम्यवादी सरकार न बन जाये . इस प्रकार हम देखते है की राष्ट्रिय आंदोलनों को देशव्यापी बनाने और प्रेरित करने में वामपंथी की भूमिका महत्वपूर्ण थी.


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